________________ ततः कारणमुत्पन्ने, भक्तपानं गवेषयेत्। विधिना पूर्वोक्तेन, अनेन उत्तरेण च॥३॥ पदार्थान्वयः- तओ-तदनन्तर कारणं-आहार के कारण उप्पण्णे-उत्पन्न होने पर . पुव्वउत्तेणं-पूर्वोक्त य-और इमेणं-इस वक्ष्यमाण उत्तरेण-उत्तर विहिणा विधि से भत्तपाणअन्न-पानी की गवेसए-गवेषणा करे। मूलार्थ- पूर्व सूत्रोक्त अल्पाहार से क्षुधा-निवृत्ति न होने के कारण यदि फिर आहार की आवश्यकता पड़े, तो साधु पूर्वोक्त विधि से तथा वक्ष्यमाण उत्तर विधि से दोबारा आहार-पानी की गवेषणा करे अर्थात् दोबारा गोचरी के लिए जाए। टीका- पूर्वसूत्र के कथनानुसार जब क्षुधा आदि वेदनाएँ अत्याधिक प्रबल हो उठे तथा रोग आदि के कारण वश अपर्याप्त आहार से अच्छी तरह निर्वाह न हो सके तो साधु फिर दूसरी बार भिक्षा लाने में किसी प्रकार की लज्जा न करे। बस उसी समय गुरु श्री से आज्ञा लेकर अपने योग्य भिक्षा ले आए। परन्तु एक बात यह अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए कि-भिक्षा लाए विधि से। यह नहीं कि कड़ाके की भूख लग रही है, सो अब कहाँ जाते आते, फिरते फिरेंगेचलो बिना देखे भाले किसी एक घर से ही पात्र पूर्ण करलें। कैसी ही क्यों न भूख-प्यास हो, कैसी ही क्यों न आपत्ति हो, साधु को अपने विधि-विधान से जरा भी मुँह नहीं मोड़ना चाहिए। पूर्वोत्तर विधि द्वारा भिक्षा ग्रहण करने से ही एषणा समिति की सम्यक्तया आराधना हो सकेगी। समिति-आराधना से ही आत्माराधना है। नित्य प्रति आहार करने वाले भिक्षुओं के लिए सूत्रकार ने एक बार ही भिक्षा लाने की आज्ञा दी है। किन्तु यह उसका अपवाद सूत्र है अर्थात् विशेष कारण के उपस्थित हो जाने पर दोबारा भी भिक्षा लाई जा सकती है। यद्यपि क्षुधा आदि अनेक कारण सूत्र-कर्ता ने वर्णन किए हैं तथापि उस समय जो मुख्य कारण उपस्थित हो जाए उसी की गणना करनी चाहिए। सूत्र का संक्षिप्त सार यह है कि-यद्यपि एक बार भिक्षा ले आने के बाद दूसरी बार भिक्षा लाना वर्जित है। ऐसा भुख-मरापन ठीक नहीं। फिर भी कारण बड़े बलवान् होते हैं; अतः अपवाद-विधि से दोबारा गोचरी करने में कोई हानि नहीं। . उत्थानिका- अब सूत्रकार यह बतलाते हैं कि भिक्षा के लिए किस समय जाना ठीक है कालेण निक्खमे भिक्खू, कालेण य पडिक्कमे। अकालं च विवजित्ता, काले कालं समायरे॥४॥ कालेन निष्क्रामेद् भिक्षुः, कालेन च प्रतिक्रामते। अकालं च विवर्ण्य, काले कालं समाचरेत्॥४॥ __ पदार्थान्वयः-भिक्खू-साधु कालेण-जिस गाँव में जो भिक्षा का समय हो उसी समय में निक्खमे-भिक्षा के लिए जाए य-फिर कालेण-स्वाध्याय आदि के समय पडिक्कमे-वापिस लौट आए च-और अकालं-अकाल को विवज्जित्ता-छोड़कर काले-काल के समय कालं-काल योग्य कार्य का समायरे-समाचरण करे। 174] दशवैकालिकसूत्रम् [पञ्चमाध्ययनम्