________________ है कि हे भगवन् ! जिस काम के लिए मैं गया हुआ था, उस काम को मैं पूर्ण करके अब आ गया हूँ अर्थात् आवश्यक क्रिया से अब मैं निवृत्त हो गया हूँ। इसके बाद 'मत्थएण वंदामिमस्तकेन वन्दे' तथा 'नमो खमासमणाणं-नमः क्षमाश्रमणेभ्यः' इत्यादि विनय पूर्वक मुख से शब्द उच्चारण करता हुआ और हाथ जोड़ता हुआ गुरु श्री के संनिकट आए। गुरु श्री के समीप आकर फिर 'इच्छाकारेण' और 'तस्सोत्तरीकरणेणं' सूत्र को पढ़कर गमनागमन की क्रिया का निषेध करने के लिए तथा मंगल के लिए '1 लोगस्स उज्जोयगरे' के सूत्र का स्थिर चित्त होकर ध्यान करे / कारण कि, जब विधिपूर्वक ध्यान किया जाएगा, तभी अतिचारों की विधिपूर्वक आलोचना हो सकेगी' अन्यथा नहीं। ऊपर के वक्तव्य से सिद्ध हुआ कि- साधु भोजन लाते ही भोजन करने न लग जाए, प्रत्युत विधिपूर्वक ही प्रवेश करे और विधिपूर्वक ही ध्यान करे। उत्थानिका- अब सूत्रकार, लोगस्स के ध्यान के अनन्तर ध्यान में किस बात का विचार करना चाहिए ? इस विषय में कहते है: आभोइत्ताण नीसेसं, अइआरं जहक्कम। गमणागमणे चेव, भत्तपाणे च संजए॥८९॥ आभोगयित्वा निःशेषम्, अतिचारं यथाक्रमम्। गमनागमनयोश्चैव , भक्तपानयोश्च संयतः॥८९॥ पदार्थान्वयः- संजए-साधु गमणागमणे-गमनागमन की क्रिया में चेव-और इसी प्रकार भत्तपाणे-अन्न-पानी के बहरने में लगे हुए नीसेसं-सम्पूर्ण अइआरं-अतिचारों को जहक्कम-अनुक्रम से आभोइत्ताणं-जान कर हृदय में स्थापन करे। मूलार्थ- भिक्षा लाने वाला साधु , कायोत्सर्ग में गमनागमन की क्रिया से तथा अन्न-पानी से संबंधित समस्त अतिचारों को अनुक्रम से एक-एक करके स्मरणकर अपने हृदय में स्थापन करे। . टीका- जब साधु भिक्षा लाकर गुरु श्री के समक्ष कायोत्सर्ग करे, तब उस कायोत्सर्ग में गमनागमन-आने-जाने की क्रिया-करते समय तथा अन्न-पानी ग्रहण करते समय जो कोई अतिचार लगे हों. उन सब को सम्यक प्रकार से स्मरण करके अपने विकार-श हृदय में स्थापित करे। इस गाथा के उक्त कथन से यह भलीभँति सिद्ध हो जाता है कि, विचारक मनुष्य को जो भी कुछ विचार करना हो वह कायोत्सर्ग-विधि से भली-भाँति किया जा सकता है। कारण कि कायोत्सर्ग (ध्यान) की दशा में अव्याक्षिप्तचित्त होने से सभी वस्तुओं का विचार पूर्ण रूपेण ठीक हो सकता है। अतः प्रत्येक वस्तु का विचार ध्यान-वृत्ति से होना चाहिए। सूत्रकर्ता ने.जो 'यथाक्रम' पद दिया है, इसका यह भाव है कि- अतिचारों की स्मृति यथाक्रम से करनी चाहिए। जैसे कि- प्रथम गमनागमन की क्रियाओं से लगे हुए अतिचारों की विचारणा करे और तत्पश्चात् अन्न-पानी के ग्रहण करते समय लगे हुए अतिचारों की। जब यथाक्रम से अतिचारों की स्मृति की जाएगी, तब स्मृति ठीक होने से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम भी होगा। इसी 1 यह लोगस्स के ध्यान की अपनी साम्प्रदायिक मान्यता है। सभी सम्प्रदाय ऐसा नहीं मानते। बहुत से सम्प्रदाय'इच्छाकारेण' सूत्र का ध्यान करना मानते हैं- संपादक। 159] दशवैकालिकसूत्रम् [पञ्चमाध्ययनम्