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________________ तत्थ से भुंजमाणस्स, अट्ठिअं कंटओ सिया। तणकट्ठसक्करं वावि, अन्नं वावि तहाविहं॥८४॥ तं उक्खिवित्तु न निक्खिवे, आसएण न छड्डए। हत्थेण तं गहेऊण, एगंतमवक्कमे // 85 // एगंतमवक्कमित्ता , अचित्तं पडिलेहिआ। जयं परिविज्जा, परिठ्ठप्प पडिक्कमे॥८६॥त्रिभिः तत्र तस्य भुञ्जानस्य, अस्थिकं कण्टकः स्यात्। तृण-काष्ठ-शर्करा वाऽपि, अनयद्वाऽपि तथाविधम्॥८४॥ तदुत्क्षिप्य न निक्षिपेत् , आस्येन न छर्दयेत्। हस्तेन तद् गृहीत्वा, एकान्तमवक्रामेत् // 85 // एकान्तमवक्रम्य , अचित्तं प्रतिलेख्य। यतं परिष्ठापयेत् , परिष्ठाप्य प्रतिक्रामेत्॥८६॥ पदार्थान्वयः- तत्थं-वहाँ पूर्वोक्त शुद्ध स्थान में भुंजमाणस्स-भोजन करते हुए सेउस साधु के आहार में अट्ठिअं-गुठली कंटको-कण्टक वावि-और तणक-ट्ठसक्करं-तृण, काष्ठ, शर्करा-कंकर वा-तथा अन्न वावि-अन्य भी कोई तहाविहं-तथाविध पदार्थ सिआ-आ जाएनिकल आए तो तं-उस पदार्थ को उक्खिवित्तु-हाथ से उठाकर न निक्खिवे-इतस्ततः न फेंके आसएण-मुख से भी न छड्डए-थूक कर दूर न गिराए, किन्तु हत्थेण-हाथ से तं-सम्यक्तया उसको गहेऊण-ग्रहण कर-पकड़कर एगंतं-एकान्त स्थान में अवक्कमे-जाए, और एगंतंएकान्तं स्थान में अवक्कमित्ता-जाकर अचित्तं-अचित्त भूमि को पडिलेहिआ-प्रतिलेखनाकार जयं-यत्ना से परिझुविज्जा-उसे परठ दे परिठ्ठप्प-परठकर पडिक्कमे-प्रतिक्रमण करे यानि ईर्यावहिया का ध्यान करे या 'वोसिरामि-वोसिरामि' कहे। मूलार्थ- पूर्व सूत्रोक्त स्थान में भोजन करते समय यदि साधु के आहार में गुठली, काँटा, तिनका, काठ, कंकर तथा अन्य भी इसी प्रकार के कोई पदार्थ आ जाएँ तो, साधु उन पदार्थों को न तो हाथ से उठाकर यत्र-कुत्रचित् फैंके और ना ही मुख से थूत्कार की ध्वनि से थूककर फैंके, किन्तु उनको सम्यक्तया हाथ से ग्रहण कर एकान्तजीव रहित स्थान में चला जाए और वहाँ एकान्त स्थान में जाकर अचित्त भूमि को खूब देख-भालकर बड़ी यत्ना के साथ परठने योग्य स्थान पर परठे और परठकर प्रतिक्रमण करे। टीका-साधु केभोजन करते समय यदि गुठली-कंटक आदि पदार्थ निकलें आए तो साधु उन पदार्थों को योंही अयत्ना से इधर-उधर थूक-थाक कर न फैंक दे, क्योंकि ऐसा करने पञ्चमाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [156
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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