________________ पदार्थ-पानी अदुवा-अथवा वारधोअणं-गुड़-घट आदि का धोवन संसेइम-पिष्टोदक-कठोती का धोवन चाउलोदगं-चावलों का धोवन अहुणाधोअं-सो यदि तत्काल का धौत हो तो विवज्जएमुनि वर्ज दे-ग्रहण न करे। मूलार्थ-जिस प्रकार अशन के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार उच्च• सुस्वादु-द्राक्षादि का पानी, अवच-दुःस्वादु-काँजी आदि का पानी, गुड़-घट के धोवन का पानी, कथरोट के धोवन का पानी, चावलों के धोवन का पानी इत्यादि, तत्काल के धोवन-पानी को मुनि कदापि ग्रहण न करे। टीका-इस गाथा में पानी के विषय में वर्णन किया गया है। जिस प्रकार उत्सर्ग और अपवाद मार्ग के द्वारा अशनादि के विषय में वर्णन किया है, ठीक उसी प्रकार पानी के विषय में भी जानना चाहिए। यथा-उच्च पानी उसे कहते हैं जिसका वर्ण-गन्ध शुभ होता है-जैसे दाख आदि का पानी। नीच पानी उसे कहते हैं जिसका वर्ण-गन्ध नहीं होता-जैसे काँजी आदि का पानी। गुड़ के घड़े का धोवन-ईख-रस के घड़े का धोवन, धान्य स्थाली का धोवन, पिष्ट आदि का धोवन तथा चावलों के धोवन का पानी, इसी प्रकार अन्य भी धोवन के पानी जो तत्काल के-तुरत के-बने हुए हों, न लेने चाहिए, क्योंकि जो धोवन पानी थोड़े समय के बने हुए होते हैं, उनमें अन्य पदार्थों का स्पर्श पूर्ण रूप से नहीं होने पाता। पूर्णरूपेण स्पर्शित शुद्ध जल ही साधु को ग्राह्य है, अन्य नहीं। इसी लिए सूत्रकार ने अधुनाधौतं विवर्जयेत्' पद दिया है। उत्थानिका- अब फिर इसी जल के विषय में कहा जाता है:जं जाणेज चिराधोअं, मइए दंसोण वा। पडिपुच्छिऊण सुच्चा वा, जंच निस्संकिअं भवे॥७६॥ यजानीयात् चिराद्धौतम् , मत्या दर्शनेन वा। प्रतिपृच्छ्य श्रुत्वा वा, यच्च निःशङ्कितं भवेत्॥७६॥ पदार्थान्वयः-जं-यदि मइए-अपनी विचार-बुद्धि से वा-अथवा दंसणेण-देखने से पडिपुच्छिऊण-गृहस्थ से पूछकर वा-या सुच्चा-सुनकर जं-पूर्वोक्त पानी के विषय में चिराधोअंयह धोवन चिरकाल का है, इस प्रकार जाणेज-जान ले च-और निस्संकिअं-पूर्ण निःशंकित भवे-हो जाए, तो ग्रहण कर ले। मूलार्थ-यदि विचार-बुद्धि से, प्रत्यक्ष दर्शन से, दातार से पूछकर या सुनकर 'यह जल चिरधौत है' ऐसा शङ्का रहित शुद्ध निश्चय हो जाए तो मुनि धोवन-पानी ग्रहण कर ले। टीका- इस गाथा में इस बात का प्रकाश किया गया है कि साधु को चाहिए कि जितने भी धोवन-पानी शास्त्रकारों ने साधु को ग्राह्य बतलाए हैं, उन सब को लेने से पहले दीर्घकालिक धौतसम्बन्धी निर्दूषणता का ज्ञान भलीभाँति प्राप्त करे। यह ज्ञान कई प्रकार से किया जा सकता है:-प्रथम तो सूत्रानुसारिणी सूक्ष्म बुद्धि से विचार करे कि प्रायः धोवन-पानी किस समय तैयार होता है ? अब क्या समय हो चला है ? गृहस्थ लोग अब किस.अवस्था में थे ? पञ्चमाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [148