________________ हो। परन्तु सब से अधिक विचित्रता जिनमें है, वे नाम हैं। इन नामों की विचित्रता ऐसी बढ़ी हुई है कि, नासमझ जनता तो बहुधा धोखा खा जाया करती है। वह कभी-कभी नामों की भूल में आकर अर्थ का अनर्थ कर डालती है, परन्तु जो विद्वान् सज्जन हैं वे कभी धोखा नहीं खाते। वे तो जो कुछ करते हैं, पूर्वापर का विचार करके ही करते हैं अस्तु सूत्रगत 'अनिमिष' शब्द के नाम साम्य से भी विपरीत कल्पना करके विद्वान् पाठक धोखा न खाए, क्योंकि फलों की अनेक जातियाँ होती हैं। कोई फल ऐसे होते है कि जिनमें गुठलियाँ अधिक होती हैं और कोई फल ऐसे होते हैं जिनमें काँटे अधिक होते हैं। कोई फल ऐसे होते हैं जिनके नाम पशु-पक्षियों के नामों पर होते हैं और कई फल ऐसे होते हैं जिनके नाम मनुष्यों के एवं अन्य पदार्थों के नामों पर होते हैं। फलों के इस प्रकार विचित्रतामय नामों के विषय में जिज्ञासु पाठकों को वैद्यक कोषों का-निघण्टुओं का अवलोकन करना चाहिए। उनमें बहुत-सी वनस्पतियाँ इसी प्रकार की मिलेंगी। जैसे कि-ब्राह्मणी, कुमारी, कन्या, मार्जारी, कपोती आदि आदि। सूत्रगत 'अनिमिष'-शब्द फल का भी वाचक है, इसके लिए कोषों के प्रमाण भी देखिए:'अणिमिस-त्रिर- (अमिनेष)-पलक न मारा हुआ और वनस्पति विशेष' (अर्द्धमागधी-कोष-प्रथम भाग पृष्ठ 181) 'अणिमिस-त्रि-(अनिमेष)-आँखनों पलकारो मार्या वगर नुं 2 वनस्पतिविशेष'। . (जैनागम-शब्दसंग्रह-अर्द्धमागधी गुजराती-कोष-पृष्ठ 48) अस्तु , उपर्युक्त कोषों के प्रमाणों से 'अणिमिस' शब्द का अर्थ मांस इस स्थान पर कदापि नहीं हो सकता, किन्तु फल विशेष ही सिद्ध होता है। मांस अर्थ करने से गाथा के अर्थ की परस्पर संगति किसी प्रकार भी महीं मिलती। एक बात और भी है-इस अध्ययन में कहीं पर भी मांस विषयक अधिकार नहीं आता। जिस प्रकार अकल्पनीय अन्न, पानी, खादिम और स्वादिम नहीं लेने चाहिए, यह विषय बारम्बार आया है और जिस प्रकार उक्त चारों आहारों का विस्तृत वर्णन किया गया है, ठीक उसी प्रकार मांस-मदिरा का कहीं पर भी विधान नहीं है। क्योंकि यह उक्त दोनों पदार्थ सर्वथा ही अभक्ष्य हैं। फिर भला इनका विधान अहिंसा प्रधान शास्त्र में किस प्रकार किया जा सकता था। इतना तो मन्द से मन्द बुद्धि भी सोच-विचार सकते हैं। ऊपर के विस्तृत विवेचन का संक्षिप्त शब्दों में यह निष्कर्ष है-उक्त 'अणिमिस' आदि पदों का वनस्पति अर्थ ही युक्ति युक्त एवं शास्त्रसम्मत है। __ उत्थानिका- अब सूत्रकार, जल के विषय में कथन करते हैं:तहेवुच्चावयं पाणं, अदुवा वारधोअणं। संसेइमं चाउलोदगं, अहुणाधोअंविवज्जए॥७५॥ तथैवोच्चावचं पानम्, अथवा वारकधावनम्। संस्वेदजंतण्डुलोदकम्, अधुनाधौतं विवर्जयेत्॥७५॥ पदार्थान्वयः-तहेव-उसी प्रकार उच्चावयं-ऊँच-नीच-अच्छा-बुरा पाणं-पीने योग्य 147 ] दशवैकालिकसूत्रम् [पञ्चमाध्ययनम्