________________ प्रतिषेधक सूत्र की एक बात अवश्य ही ध्यान देने योग्य है / वह यह कि-यह सूत्र, उत्सर्ग सूत्र है। अतः उत्सर्ग-मार्गावलम्बी मुनि के लिए ही इस प्रकार मालापहृत आहार लेने का सर्वथा प्रतिषेध है। रहे अपवाद-मार्गावलम्बी मुनि; सो उनके लिए भी निषेध है। परन्तु सर्वथा नहीं। वे वर्तमान द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के विचार से उचित या अनुचित जैसा जान पडे वैसा ही कर सकते हैं / शास्त्रकारों ने अपवाद-मार्गियों के लिए किन्हीं विशेष कारणों से प्रतिषेध में भी विधि का विधान किया है। सभी प्रतिषेधों के लिए यह बात नहीं है। किन-किन प्रतिषेधों में किनकिन विधियों का कैसे-कैसे विधान है ? यह ज्ञान जिज्ञासु शिष्य सद्गुरु-सेवा से प्राप्त करें'गुरु विन ज्ञान की प्राप्ति नाहीं'। उत्थानिका- अब सूत्रकार, वनस्पति-अधिकार के विषय में कहते हैं:कंदं मूलं पलंबं वा, आमं छिन्नं च सन्निरं। तुंबागं सिंगबेरं च, आमगं परिवज्जए॥७०॥ कन्दं मूलं प्रलम्बं वा, आमं छिन्नं च सन्निरम्। तुम्बकं शृङ्गवेरं च, आमकं परिवर्जयेत्॥७०॥ पदार्थान्वयः-कंदं-कन्द मूलं-मूल वा-अथवा पलंबं-फल आमं-कच्चा च-और सन्निरं-पत्रशाक तुंबागं-तुम्बक-घीया शाक च-तथा सिंगबेरं-अदरख आमगं-अपक्च-सचित्त छिन्नं-छेदन-भेदन किया हुआ, यदि कोई दे तो साधु परिवज्जए-छोड़ दे। मूलार्थ-कन्द, मूल, फल, पत्रशाक, तुम्बक और अदरख आदि यदि कच्चे हों, छेदन-भेदन किए हुए हों, परन्तु अग्नि प्रमुख तीक्ष्ण शस्त्र से पूर्णतया प्रासुक न हों, तो आत्मार्थी मुनि कदापि ग्रहण न करे। ____टीका- इस सूत्र में यह कथन है कि-भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर पर गए हुए साधु को यदि कोई साधुओं के आचार-विचार को न जानने वाला गृहस्थ, कच्चे-सचित्त एवं छिन्नभिन्न किए हुए कन्द-मूल-फल आदि वनस्पति पदार्थ देने लगे तो साधु कदापि ग्रहण न करे। बिना अग्नि आदि विशेष तीक्ष्ण शस्त्र के ऐसे पदार्थों में पूर्ण पक्वता नहीं आती। ऐसे पदार्थ क्यों नहीं ग्रहण करे ? क्या हानि है ? इसका उत्तर संक्षिप्त शब्दों में यह है कि ये सब पदार्थ अपने-अपने स्वरूप से संख्यात, असंख्यात और अनन्त जीवों के समूहरूप होने से बिना किसी ननु-नच के सचित्त हैं। अतः साधुओं को प्रथम अहिंसा-महाव्रत की पूर्णरूपेण रक्षा के लिए उक्त कच्चे पदार्थ अपने खान-पान आदि के प्रयोग में कदापि नहीं लाने चाहिए। यहाँ उपलक्षण से सभी जाति के कच्चे-सचित्त-फलों का ग्रहण है। अतः सभी के लिए प्रतिषेध है, किसी एक के लिए नहीं। उदाहरण के तौर पर ये विशेष नाम कह दिए हैं। उत्थानिका- अब सूत्रकार, बाजार में बिकने वाले खाद्य पदार्थों के विषय में कहते हैं:तहेव सत्तुचुन्नाई, कोलचुनाइं आवणे। सक्कुलिं फाणियं पूर्य, अन्नं वावि तहाविहं॥७१॥ पञ्चमाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [144