________________ संघट्टित पदार्थ को दे तो साधु को वह ग्रहण नहीं करना चाहिए। जैन शास्त्रकारों का अटल .. सिद्धान्त है कि-अग्नि सचित्त है-सजीव है। अतः पूर्ण अहिंसा को लक्ष्य में रखते हुए अग्निकाय के जीवों की रक्षा के लिए सूत्रकार ने यह निषेध किया है। उत्थानिका- अब सूत्रकार, फिर अग्नि के सम्बन्ध में ही कहते है:एवं उस्सक्किया ओसक्किया, उज्जालिया पज्जालिया निव्वाविया उस्सिंचिया निस्सिंचिया, ओवत्तिया ओयारिया दए॥६३॥ तं भवे भत्तपाणं तु , संजयाण अकप्पि। दितिअं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं॥६४॥युग्मम् एवमुत्ष्वष्क्यावष्वष्क्य , उज्ज्वाल्य प्रज्वाल्य निर्वाप्य।... उत्सिच्य निषिच्य, अपवर्त्य अवतार्य दद्यात्॥६३॥ तद्भवेद् भक्तपानन्तु, संयतानामकल्पिकम् / ददतीं प्रत्याचक्षीत, न मे कल्पते तादृशम्॥६४॥ पदार्थान्वयः- एवं -इसी प्रकार कोई श्राविका उम्सक्किया-चूल्हे में इंधन डालकर, ओसक्किया-चूल्हे में से इंधन निकालकर उज्जालिया-स्तोकमांत्र चूल्हे में इंधन डालकर पज्जालियाबहुत सा इंधन चूल्हे मे डालकर, अथवा निव्वाविया-अग्नि को बुझाकर, या उस्सिंचिया-अग्नि पर रक्खे हुए पात्र में से थोड़ा सा अन्न निकालकर निस्सिंचिया-अग्नि पर रक्खे हुए पात्र में पानी का छींटा देकर ओवत्तिया-अग्नि पर का अन्न अन्य पात्र में डालकर ओयारिया-अग्नि पर से पात्र उतारकर साधु को आहार दए-दे तु-तो तं-वह भत्तपाणं-आहार-पानी संजयाणं-साधुओं को अकप्पिअं-अकल्पनीय भवे-होता है दितिअं-देने वाली से पडिआइक्खे-कह दे कि तारिसंइस प्रकार का आहार-पानी मे-मुझे न-नहीं कप्पइ-कल्पता है। मूलार्थ- इस प्रकार यदि कोई दातार श्राविका- चूल्हे में इंधन डालकर, चूल्हे में से इंधन निकालकर, स्तोकमात्र इंधन चूल्हे में डालकर, बहुत-सा इंधन चूल्हे में डालकर, जलती हुई अग्नि को बुझाकर, अग्नि-स्थित पात्र में से थोड़ा-सा अन्न निकालकर अग्नि-स्थित पात्र में जल का छींटा डालकर, अग्नि पर के अन्न को अन्य पात्र में निकालकर तथा अग्नि पर से पात्र उतारकर साधु को आहार-पानी दे- तो वह आहार-पानी साधु के योग्य नहीं होता; अतः साधु देने वाली से कह दे कि- बहन ! यह आहार मेरे अयोग्य है, इसलिए मैं नहीं ले सकता। . टीका- इस सूत्र में यह वर्णन किया गया है कि- जब कोई साधु आहारार्थ गृहस्थ के घर पर जाए , तब गृहस्थ साधु को आते देखकर या स्वभावतः चूल्हे में अग्नि सुलगाकर इन्धन डाल दे या अधिक जानकर चूल्हे में से निकाल ले तथा थोड़ा या बहुत इन्धन चूल्हे में पञ्चमाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [140