________________ इस प्रकार प्रस्तुत आगम में आलम्बन और उद्दीपन के संयोग से स्थायी भाव निर्वेद की शांत रस में निष्पत्ति हुई है। एक उदाहरण दर्शनीय है जरा जाव न पीडेई, वाही जाव न वड्ढई। जाविंदिआ न हायंति, ताव धम्मं समायरे॥ (अध्ययन-8, गाथा-6) यहाँ जरा पीड़ित जीवन की आशंका, व्याधि से होने वाले दुखों का आभास और इन्द्रियों के अशक्त होने की सम्भावना से शांत रस के स्थायी भाव निर्वेद की ओर संकेत है और इस में प्राणी मात्र को उपदेश इसका उद्दीपन विभाव है। इस तरह इस गाथा की शांत रस' में निष्पत्ति हुई है। आचार्य सम्राट् पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज ने आज से लगभग 57 वर्ष पूर्व दशवैकालिक सूत्र' का आत्मज्ञान प्रकाशिका नामक हिन्दी भाषा टीका, संस्कृत छाया, अन्वयार्थ, मूलार्थ और टिप्पणी आदि सहित अनुवाद किया था। प्रस्तुत आगम का अनुवाद उनकी विद्वत्ता का निदर्शन है। अनुवाद के बीच-बीच अपने गहन अनुभवों और अपने मुनि जीवन की छाप भी उन्होंने छोड़ी है। ... आज इस आगम के पुनः प्रकाशन पर मुझे हर्ष का अनुभव हो रहा है। मैं युवा मंत्री श्री शिरीष मुनि जी को धन्यवाद दूंगा जिन्होंने इस आगम के प्रकाशन में भागीरथ प्रयत्न किया।मुझे आशा है कि प्रस्तुत आगम साहित्य अन्वेषकों के लिए लाभप्रद होने के साथ-साथ हमारा प्रयास भी सफल होगा। 9000 XIV