________________ मूलार्थ- गर्भवती स्त्री के लिए खास तैयार किए गए तथा भोजनार्थ उससे लिए हुए विविध प्रकार के खाद्य तथा पेय पदार्थों को अहिंसा-व्रती मुनि ग्रहण न करे। यदि वे पदार्थ भुक्तशेष हों-भोजन से बचे हुए हों-तो ग्रहण कर ले। टीका-इस सूत्र में इस विषय का वर्णन है कि, गर्भवती स्त्री के लिए तैयार किए गए नाना प्रकार के खाद्य तथा पेय पदार्थों को यदि वह स्त्री अपने उपभोग में ला रही हो तो मुनि ग्रहण न करे / कारण कि यदि फिर उस अवशिष्ट स्वल्प भोजन से गर्भवती की तृप्ति न हुई तो गर्भपात आदि हो जाने की संभावना है। अतः साधु, जो भोजन गर्भवती के खाने से बचा हुआ हो उसे ही स्व-योग्य जानकर ग्रहण कर सकता है। इस ऊपर के कथन से यह भलीभाँति सिद्ध हो जाता है कि जैन साधुओं का अहिंसाव्रत स्थूल दृष्टि से वर्णित नहीं है जो स्थूल बुद्धि वाले ऐरे-गैरे नाम-प्रेमी इसका पालन कर लें। जैन साधुओं के अहिंसा-व्रत का वर्णन अत्यन्त सर्वतोव्यापिनी सूक्ष्म दृष्टि से किया है। अतः इसे सूक्ष्म दृष्टि वाले कार्य-प्रेमी महानुभाव ही पालन कर सकते हैं। . . उत्थानिका- अब आचार्य, गर्भवती स्त्री से आहार लेने के विषय में कहते हैं:सिआ य समणट्ठाए, गुव्विणी कालमासिणी। उट्ठिआ वा निसीइज्जा, निसन्ना वा पुणुहुए॥४०॥ तं भवे भत्तपाणं तु , संजयाण अकप्पिअं। : दितियं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं॥४१॥युग्मम् स्याच्च श्रमणार्थम् , गुर्बिणी कालमासवती। उत्थिता वा निषीदेत् , निषण्णा वा पुनत्तिष्ठेत्॥४०॥ तद्भवेद् भक्तपानन्तु, संयतानामकल्पिकम् / , ददतीं प्रत्याचक्षीत, न मे कल्पते तादृशम्॥४१॥ पदार्थान्वयः-य-यदि सिआ-कदाचित् कालमासिणी-पूरे महीने वाली गुठ्विणीगर्भवती स्त्री समणट्ठाए-साधु को दान देने के लिए उट्ठिआ-खड़ी हुई निसीइज्जा-बैठे वा-अथवा निसन्ना-बैठी हुई पुणुहुए-फिर खड़ी हो तु-तो तं-वह भत्तपाणं-आहार-पानी संजयाणसंयतों को-साधुओं को अकप्पिअं-अकल्पनीय-अयोग्य भवे-होता है, अतः दितियं-उस देने वाली स्त्री से पडिआइक्खे-कह दे कि मे-मुझे तारिसं-इस प्रकार का आहार-पानी न कप्पइनहीं कल्पता है। मूलार्थ-यदि कदाचित् गर्भवती स्त्री, साधुको आहार-पानी (देने) के लिए खड़ी हुई बैठे और बैठी हुई फिर खड़ी हो तो वह आहार-पानी साधु के लिए अग्राह्य है। अतः देने वाली स्त्री से कह दे कि इस प्रकार का आहार-पानी लेना मुझे नहीं कल्पता है। पञ्चमाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [128