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________________ उत्थानिका-अब सूत्रकार, यदि दोनों ही व्यक्ति निमन्त्रणा करें तो फिर ग्रहण करना चाहिए या नहीं ? इस प्रश्न का उत्तर देते हैं: दुण्हं तु भुंजमाणाणं, दोवि तत्थ मिनंतए। दिज्जमाणं पडिच्छिज्जा, जंतत्थेसणियं भवे॥३८॥ द्वयोस्तु भुञ्जानयोः , द्वावपि तत्र निमन्त्रयेयाताम्। दीयमानं प्रतीच्छेत्, यत्तत्रैषणीयं भवेत्॥३८॥ पदार्थान्वयः-दुण्हं-दो व्यक्ति भुंजमाणाणं-भोगते हुए हों तत्थ-वहाँ पर-उनमें से दोवि-दोनों ही व्यक्ति निमंतए-निमंत्रणा करें.तु-तो दिज्जमाणं-उस दीयमान पदार्थको पडिच्छिज्जाग्रहण कर ले जं-जो-वह पदार्थ तत्थ-उस समय वहाँ एसणियं-एषणीय-सर्वथा शुद्ध भवे-हो तो। मूलार्थ-यदिवे सम्मिलित-एक पदार्थ के भोगने वाले दोनों ही व्यक्ति निमंत्रणा करें तो, मुनि उस देते हुए पदार्थ को ग्रहण कर ले यदि वह पदार्थ शुद्ध-निर्दोष-हो तो। टीका-पूर्व सूत्र में यह कथन किया जा चुका है कि गोचरी के लिए गया हुआ साधु दो व्यक्तियों के स्वामित्व वाले-सांझे के-पदार्थ को एक स्वामी की निमंत्रणा से ग्रहण न करे। अब इस सूत्र में यह बतलाया है कि यदि दोनों ही व्यक्ति प्रेमपूर्वक भक्ति-भावना से निमंत्रणा करें तो फिर ग्रहण कर ले; क्योंकि दोनों व्यक्तियों की सम्मिलित रूप से सप्रेम निमंत्रणा हो जाने पर फिर पूर्व सूत्रोक्त पारस्परिक वैमनस्य आदि दोषों के उत्पन्न होने की कोई आशंका नहीं रहती। हाँ, लेते समय उस पदार्थ की अन्य भिक्षा-सम्बन्धी शुद्धता-अशुद्धता का अवश्य ध्यान रखना चाहिए, केवल निमंत्रणा की शुद्धता पर ही न रहना चाहिए। यदि वह अन्य सभी प्रकार से शुद्ध-निर्दोष-मालूम हो तो ग्रहण करे, नहीं तो नहीं, क्योंकि यदि अन्य भिक्षा-सम्बन्धी दोषों पर पूर्ण ध्यान नहीं रक्खा जाएगा तो संयम वास्तविक संयम नहीं रह सकता अर्थात् ऐसी लापरवाही करने से संयम-विराधना अवश्यंभावी है। ____उत्थानिका- अब सूत्रकार, गर्भवती स्त्री के लिए तैयार किए हुए आहार पानी के लेने न लेने के विषय में कहते हैं: गुठ्विणीए उवण्णत्थं, विविहं पाणभोयणं। भुंजमाणं विवज्जिज्जा, भुत्तसेसं पडिच्छए॥३९॥ . गुर्विण्या उपन्यस्तम् , विविधं पानभोजनम्। भुज्यमानं विवर्जयेत् , भुक्तशेषं प्रतीच्छेत्॥३९॥ पदार्थान्वयः- गुव्विणीए-गर्भवती स्त्री के लिए उवण्णत्थं-उपन्यस्त-तैयार किए हुए भुंजमाणं-भोजनार्थ लिए हुए विविहं-नाना प्रकार के पाणभोयणं-खाद्य तथा पेय पदार्थ को, साधु विवज्जिज्जा-छोड़ दे-ग्रहण न करे भुत्तसेसं-भुक्तशेष-खाने से बचे हुए को तो पडिच्छएग्रहण कर ले। 127 ] दशवैकालिकसूत्रम् [पञ्चमाध्ययनम्
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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