________________ छोड़ दे, क्योंकि उक्त स्थानों में गमन करने से शासन की लघुता तथा आत्म-विराधना होने की सम्भावना है। __यहाँ यदि यह शङ्का की जाए कि गमन करते हुए साधु को यदि इन स्थानों का पता ही न लगे और वह भूल से वहाँ तक पहुँच जाए तो फिर वह वहाँ क्या करे ? इसका समाधान यह है कि यदि भूल से कदाचित् ऐसा हो जाए तो साधु को वहाँ खड़ा बिल्कुल न होना चाहिए अथवा जिस प्रकार से उन लोगों के अन्त:करण में किसी प्रकार की शङ्का उत्पन्न न हो सके, उस प्रकार से साधु को वर्तना चाहिए, क्योंकि शङ्का के उत्पन्न हो जाने से कई प्रकार की आपत्तियों के उत्पन्न होने की सम्भावना है। उत्थानिका- शास्त्रकार इसी प्रकार के और भी स्थान बतलाते हैं:पडिकुटुं कुलंन पविसे, मामगं परिवज्जए। अचिअत्तं कुलं न पविसे, चिअत्तं पविसे कुलं॥१७॥ प्रतिक्रुष्टं कुलं न प्रविशेत्, मामकं परिवर्जयेत्। अप्रीतं कलं न प्रविशेत, प्रीतं प्रविशेत्कुलम्॥१७॥ पदार्थान्वयः- पडिकुटुं-निषिद्ध कुलं-कुल में न पविसे-प्रवेश न करे मामगं-जिस घर का स्वामी यह कह दे कि भविष्य में मेरे घर पर मत आना उस घर को परिवज्जए-वर्ज दे . अचिअत्तं कलं-जिस कल में जाने से उस कल के मनुष्यों को अप्रीति उत्पन्न हो उस कल में न पविसे-प्रवेश न करे चिअत्तं-जिस कुल में मुनि की प्रीति हो उसी कुलं-कुल में पविसे-प्रवेश करे। मूलार्थ साधु निन्दनीय-समाज से वर्जित-घर में, भविष्य में मेरे घर पर मत आना' इस तरह की सूचना देने वाले कुल में, जिस कुल में जाने से.अप्रीति उत्पन्न हो जाए, उस कुल में, आहार-पानी लेने के लिए न जाए, किन्तु जिस कुल में जाने से प्रसन्नता प्रकट हो, उसी कुल में जाए। टीका-'पडिकुटुं'-'प्रतिक्रुष्टम्''निषिद्ध-निन्दित' कुल दो प्रकार के हैं- एक अल्पकालिक और दूसरा यावत्कालिक। थोड़े से समय के लिए अर्थात् सावधि समय के लिए समाज ने जिन कुलों को त्याग दिया है वे 'अल्पकालिक कुल' हैं और जिनको हमेशा के लिए समाज ने त्याग दिया है यावत्कालिक कुल' कहलाते हैं। ऐसे कुलों में से आहार-पानी लेने का साधु के लिए इसलिए निषेध है ताकि लोक-व्यवहार की स्थिति जो कि दुराचार को हटाने और सदाचार को जारी रखने के उद्देश्य से की जाती है, यथावत् बनी रहे। साधु को निषिद्ध कुलों से किसी प्रकार का द्वेष नहीं है। जिन लोगों ने यह कह दिया हो कि 'महात्मन् ! भविष्य में आप मेरे यहाँ मत आना' उनके घरों में साधु इसलिए न जाए कि यदि निषेध करने पर भी जाएगा तो वहाँ पर अनेक प्रकार के भण्डनादि प्रसङ्ग उपस्थित होने की सम्भावना है। 'अचियत्तं कुलं''अप्रीतं कुलम्'-'साधु का जाना जिन घरों में अच्छा न लगता हो', इसके दो अर्थ हैं-एक तो यह कि 'जिन घर वालों को साधु का अपने यहाँ आना अच्छा न लगता हो'; दूसरा यह कि "जिन घरों में जाने से साधु औरों को अच्छा न लगता हो-साधु की उसमें प्रतिष्ठा जाती हो; जैसे पञ्चमाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [112