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________________ दवदवस्स न गच्छेज्जा, भासमाणो अगोयरे। हसंतो नाभिगच्छेज्जा, कुलं उच्चावयं सया॥१४॥ द्रुतं द्रुतं न गच्छेत् , भाषमाणश्च गोचरे। हसन्नाभिगच्छेत् , कुलमुच्चावचं सदा॥१४॥ पदार्थान्वयः-गोयरे-गोचरी के लिए दवदवस्स-जल्दी-जल्दी अ-और भासमाणोभाषण करता हुआ न गच्छेज्जा-न जाए हसंतो-हँसता हुआ उच्चावयं कुलं-ऊँच वा नीच कुल में सया-सदा -कभी भी नाभिगच्छेज्जा-न जाए। मूलार्थ-साधु गोचरी के लिए कभी भी जल्दी-जल्दी गमन न करे; बाचचीत करता हुआ एवं हँसता हुआ ऊँच-नीच कुल में गमन न करे।। टीका- जल्दी-जल्दी बातचीत करते हुए ऊँच-नीच कुल में गमन करने से साधु की अयोग्यता प्रदर्शित होती है और ईर्या-समिति का पालन भी नहीं होता। संयम रूप तथा आत्म रूप विराधनाओं के और लोकापवादादि दोषों के होने की भी सम्भावना रहती है। ऊँचनीच कुल में भी द्रव्य और भाव की अपेक्षा से दो-दो भेद हैं। जैसे कि गृहवासी द्रव्य से उच्च कुल और उच्च-जात्यादियुक्त-भाव से उच्च कुल माना जाता है, उसी प्रकार कुटीरवासी द्रव्य से नीच कुल और हीन जात्यादियुक्त-भाव से नीच कुल माना जाता है। उच्चावयं' शब्द के-१. उच्चनीच, 2. अनुकूल-प्रतिकूल, 3. अव्यवस्थित, 4. विविध, 5. अति उत्तम, 6. महाव्रत 7. महाव्रतधारी, ये सात अर्थ हैं। लेकिन यहाँ पर उसके संग में शास्त्रकार ने 'कुलं' विशेषण दिया है। इसलिए उसका अर्थ यहाँ पर 'ऊँच-नीच कुल' ही किया गया है। उत्थानिका-शास्त्रकार इसी विषय में कुछ और विशेष प्रतिपादन करते हैं:आलोअं थिग्गलं दारं, संधिं दगभवणाणि अ। चरंतो न विणिज्झाए, संकट्ठाणं विवज्जए॥१५॥ आलोकं चितं द्वारम् , संधिमुदकभवनानि च। चरन्न विनिर्ध्यायेत् , शङ्कास्थानं विवर्जयेत्॥१५॥ ___ पदार्थान्वयः-चरंतो-गोचरी में चलता हुआ आलोअं-गवाक्षादि-झरोखे थिग्गलंचिना हुआ वा भित्ति दारं-द्वारादि संधिं-चौरादि के द्वारा किया हुआ ऐंडा अ-और दगभवणाणिपानी के गृहादि को न विणिज्झाए-न देखे संकट्ठाणं-शङ्का के स्थानों को विवजए-छोड़ दे। मूलार्थ-गोचरी के लिए जाता हुआ साधु झरोखादि को, भित्ति को, द्वारादि को, सेंध को-ऐंडे को और पानी के भवनों को मार्ग में न देखे तथा शङ्का के सब स्थानों को छोड़ दे। टीका-उक्त स्थानों को साधु इसलिए न देखे कि उनके बार-बार अवलोकन करने पञ्चमाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [110
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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