________________ पदार्थान्वयः-अजय-अयत्न से चिट्टमाणो-स्थित होता हुआ पाणभूयाइ-प्राणीद्विन्द्रियादि जीवों और भूत-एकेन्द्रिय जीवों की हिंसइ-हिंसा करता है पावयं-ज्ञानावरणादि पाप कम्म-कर्म को बंधइ-बाँधता है तं से-अतएव पीछे उसको कडुयं फलं-कटुक फल होइ-होता मूलार्थ-अयत्न से खड़ा हुआ जीव, प्राणी और भूतों की हिंसा करता है और पाप-कर्म को बाँधता है, जिस कारण से पीछे उसे कटुक फल प्राप्त होता है। टीका-जिस प्रकार गमन-क्रिया बिना यत्न से पाप-कर्म के उपार्जन करने का एक हेतु बन जाती है, ठीक उसी प्रकार स्थिति-क्रिया भी बिना यत्न से की गई पाप-कर्म के उपार्जन करने का करण बन जाती है। शेष पूर्ववत्। . उत्थानिका-सूत्रकार अब बैठने रूप क्रिया के विषय में कहते हैं:अजयं आसमाणो उ, पाणभूयाइं हिंसइ। बंधइ पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं // 3 // .. अयतमासीनस्तु , प्राणभूतानि हिनस्ति। बध्नाति पापकं कर्म, तत्तस्य भवति कटुकं फलम्॥३॥ ... पदार्थान्वयः-अजय-अयत्न से आसमाणो-बैठता हुआ पाणभूयाई-प्राणीद्वीन्द्रियादि जीवों और भूत-एकेन्द्रिय जीवों की हिंसइ-हिंसा करता है पावयं-ज्ञानावरणादि पाप . कम्म-कर्म को बंधइ-बाँधता है तं से-अतएव पीछे उसको कडुयं फलं-कटुक फल होई-होता मूलार्थ-अयत्न से बैठता हुआ जीव, प्राणी और भूतों की हिंसा करता है और पाप-कर्म को बाँधता है, जिस कारण से पीछे उसे कटुक फल प्राप्त होता है। टीका-सुगम। उत्थानिका-उसी तरह सूत्रकार अब शयन-क्रिया के विषय में कहते हैं:-.. अजयं सयमाणो उ, पाणभूयाइं हिंसइ। बंधइ पावयं कम्मं, तं से होइ कडुयं फलं॥४॥ अयतं शयानस्तु, प्राणभूतानि हिनस्ति। बधाति पापकं कर्म, तत्तस्य भवति कटुकं फलम्॥४॥ पदार्थान्वयः-अजयं-अयत्न से सयमाणो-शयन करता हुआ पाणभूयाई-प्राणीद्वीन्द्रियादि जीवों और भूत-एकेन्द्रिय जीवों की हिंसइ-हिंसा करता है पावयं-ज्ञानावरणादि पाप कम्म-कर्म को बंधइ-बाँधता है तं से-अतएव पीछे उसे कडुयं फलं-कटुक फल होई-होता है। - मूलार्थ-अयत्न से शयन करता हुआ जीव, प्राणी और भूतों की हिंसा करता है और पाप-कर्म को बाँधता है, जिस कारण से पीछे उसे कटुक फल प्राप्त होता है। 78] दशवैकालिकसूत्रम् [चतुर्थाध्ययनम्