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________________ स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा, संयत-विरत-प्रतिहत-प्रत्याख्यातपापकर्मा; दिवा वा, रात्रौ वा, एकको वा, परिषद्गतो वा, सुप्तो वा, जाग्रद्वास कीटं वा, पतङ्गं वा, कुन्थु वा, पिपीलिकां वा; हस्ते वा, पादे वा, बाहौ वा, ऊरौ वा, उदरे वा, शीर्षे वा, वस्त्रे वा, प्रतिग्रहे वा, कम्बले वा, पादप्रोञ्छनके वा, रजोहरणे वा, गुच्छके वा, उन्दुके वा, दण्डके वा, पीठके वा, फलके वा, शय्यायां वा, संस्तारके वा, अन्यतरस्मिन् वा तथाप्रकारे उपकरणजाते, ततः संयतमेव प्रतिलिख्य प्रतिलिख्य, प्रमृज्य प्रमृज्य, एकान्तमपनयेत्, नैनं संघातमापादयेत् // 6 // [ सूत्र // 19 // ] पदार्थान्वयः-से-वह भिक्खू वा-साधु अथवा भिक्खुणी वा-साध्वी अथवा जो कि संजय-निरन्तर यत्नशील है विरय-नाना प्रकार के तप-कर्मों में रत है पडिहय-प्रतिहत है पच्चक्खायपावकम्मे-पाप कर्म को छोड़ चुका है दिआ वा-दिन में अथवा राओ वा-रात्रि में अथवा एगओ वा-अकेला हो अथवा परिसागओवा-परिषद् में बैठा हुआ हो अथवा सुत्ते वासोया हुआ हो अथवा जागरमाणे वा-जागता हुआ हो से-यथा कीडं वा-कीटक को अथवा . पयंगं वा-पतङ्गे को अथवा कुंथु वा-कुन्थुए को अथवा पिपीलियं वा-पिपीलिका को हत्थंसि वा-हाथ पर अथवा पायंसि वा-पाँव पर अथवा बाहुंसि वा-भुजा पर अथवा उरूंसि वा-गोडे पर अथवा उदरंसि वा-पेट पर अथवा सीसंसिं वा-सिर पर अथवा वत्थंसि वा-वस्त्र पर अथवा पडिग्गहंसि वा-पात्र पर अथवा कबलंसिवा-कम्बल पर अथवा पायपुंछणंसिवा-पादप्रोक्षणआसनादि-पर अथवा रयहरणसिवा-रजोहरण पर अथवा गच्छगसिवा-गोच्छग पर अथवा उडगंसिवा- मूत्रपात्र पर अथवा दंडगंसि वा-दंडे पर अथवा पीढगंसि वा-चौकी पर अथवा फलगंसि वा-पट्टे पर अथवा सिज्जंसि वा-शय्या पर अथवा संथारगंसि वा-बिछौने पर अथवा अन्नयरंसि वा-अन्य तहप्पगारे-इसी प्रकार के उवगरणजाए-किसी उपकरण पर चढ़ जाने के तओ-बाद संजयामेव-यत्न-पूर्वक पडिलेहिअपडिलेहिअ-देख-देखकर पमजिअपमजिअपोंछ-पोंछ कर एगंतमवणिज्जा-एकान्त स्थान में रख दे नो णं संघायमाविज्जिज्जा-घात न करे-एकत्रित न करे-पीड़ा न पहुँचाए। ___ मूलार्थ-पञ्चमहाव्रत-युक्त वह भिक्षु अथवा भिक्षुकी, जो कि संयत है, विरत है, प्रतिहत है और पाप-कर्मों को जिसने त्याग दिया है। दिन में, रात्रि में, अकेलेदुकेले, सोते-जागते; यदि कीट, पतंगे, कुन्थए, पिपीलिका आदि जीव; हाथ पर, पाँव पर, भुजा पर,गोडे पर (घुटने पर), पेट पर, सिर पर, वस्त्र पर, पात्र पर, कम्बल पर, आसन पर, रजोहरण पर, गोच्छग पर, पात्रों के पोंछने के वस्त्र पर, मूत्रके पात्र पर, - 1 पात्रों के पोंछने का जो वस्त्र होता है, उसे 'गोच्छग' कहते हैं। 2. उंडगं'उन्दकं 'स्थणिडलं शय्या संस्तारिको वसतिर्वा इति टीकायाम्। 74] दशवैकालिकसूत्रम् [चतुर्थाध्ययनम्
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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