________________ जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं, वायाए, काएणं; न करेमि, न कारवेमि, करंतंपि अन्नं न समणुजाणामि। तस्स भंते ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि॥२॥[ सूत्र // 15 // ] . स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा, संयत-विरत-प्रतिहत-प्रत्याख्यातपापकर्मा, दिवा वा, रात्रौ वा, एकको वा, परिषद्गतो वा, सुप्तो वा, जाग्रद्वा; स उदकं वा, अवश्यायं वा, हिमं वा, मिहिकां वा,करकं वा, हरतनुकं वा, शुद्धोदकं वा, उदकाई वा कायम, उदकाई वा वस्त्रम्, वा, सस्निग्धं वा, कायम्, सस्निग्धं वा वस्त्रम् नामृषेत् , न संस्पृशेत् , नापीडयेत्, न प्रपीडयेत्, नास्फोटयेत्, न प्रस्फोटयेत्, नातापयेत्, न प्रतापयेत् ; अन्येन नामर्षयेत्, न संस्पर्शयेत् , नापीडयेत्, न प्रपीडयेत्, नास्फोटयेत्, न प्रस्फोटयेत्, नातापयेत्, न प्रतापयेत्; अन्यमामृषन्तं वा, संस्पृशन्तं वा, आपीडयन्तं वा, प्रपीडयन्तं वा, आस्फोटयन्तं वा, प्रस्फोटयन्तं वा, आतापयन्तं वा, प्रतापयन्तं वा न समनुजानीयात्; यावज्जीवं त्रिविधं त्रिविधेन, मनसा, वाचा, कायेन; न करोमि, न कारयामि, कुर्वन्तमप्यन्यं न समनुजानामि। तस्य भदन्त ! प्रतिक्रामामि, निन्दामि, गहें, आत्मानं व्युत्सृजामि॥२॥ [सूत्र // 15 // ] ... ‘पदार्थान्वयः-से-वह भिक्खू वा-साधु, अथवा भिक्खुणी वा-साध्वी, जो कि संजय-निरन्तर यत्नशील हैं विरय-नाना प्रकार के सामान्य तप-कर्म में रत हैं पडिहय-प्रतिहत हैं पच्चक्खायपावकम्मे-पापकर्म को छोड़ चुके हैं दिआ वा-दिन में अथवा राओ वा-रात्रि में अथवा एगओ वा-अकेले हों अथवा परिसागओ वा-परिषद् में बैठे हुए हों, अथवा सुत्ते वासोए हुए हों अथवा जागरमाणे वा-जागते हुए हों से-जैसे कि उदगं वा-कूपादि का पानी अथवा ओसंवा-ओस का पानी अथवा हिमं वा-बर्फ़ का पानी अथवा महियं वा-धुंध का पानी अथवा करगं वा-गढ़ो का(ओले का) पानी अथवा हरतणुगं वा-भूमि को उद्भेदन कर तृणादि पर स्थित हुआ पानी अथवा सुद्धोदगं वा-वर्षा का पानी इत्यादि से उदउल्लं वा कायं-गीले हुए शरीर को अथवा उदउलल्लं वा वत्थं-गीले हुए वस्त्र को, अथवा ससिणिद्धं वा कायंस्निग्ध काय को अथवा ससिणिद्धं वा वत्थं-स्निग्ध वस्त्र को न अमुसिज्जा-एक बार स्पर्श न करे न संफुसिज्जा-बार-बार स्पर्श न करे न आवीलिज्जा-थोड़ा भी दबाए नहीं न पवीलिज्जाबार-बार दबाए नहीं न अक्खोडिज्जा-एक बार भी झाड़े नहीं न पक्खोडिजा-बार-बार झाड़े चतुर्थाध्ययनम्] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [65 -