________________ उत्थानिका-पाँच महाव्रतों के अनन्तर अब सूत्रकार छठे रात्रि भोजन-विरमण व्रत के विषय में वर्णन करते हैं: अहावरे छटे भंते ! वए राइभोयणाओ वेरमणं। सव्वं भंते ! राइभोयणं पच्चक्खामि। से असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा; नेव सयं राई भुंजिज्जा, नेवऽन्नेहिं राई भुंजाविज्जा, राई भुंजंतेऽवि अन्ने न समणुजाणामि; जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं, वायाए, काएणं; न करेमि, न कारवेमि, करंतंपि अन्नं न समणुजाणामि। तस्स भंते ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि। छठे भंते ! वए उवढिओमि सव्वाओ राइभोयणाओ वेरमणं॥६॥ [सूत्र // 12 // ] . अथापरस्मिन् षष्ठे भदन्त ! व्रते रात्रिभोजनाद्विरमणम्। सर्वं भदन्त! रात्रिभोजनं प्रत्याख्यामि। अथ अशनं वा, पानं वा, खाद्यं वा, स्वाद्यं वा; नैव स्वयं रात्रौ भुञ्जे, नैवान्यैः रात्रौ भोजयामि. रात्रौ भुञ्जानानप्यन्यान् न समनुजानामि; यावज्जीवं त्रिविधं त्रिविधेन, मनसा, वाचा, कायेन; न करोमि, न कारयामि, कुर्वन्तमप्यन्यं न समनुजानामि। तस्य भदन्त ! प्रतिक्रामामि, निन्दामि, गर्हे, आत्मानं व्युत्सुजामि। षष्ठे भदन्त ! व्रते उपस्थितोऽस्मि सर्वस्मात् रात्रिभोजनाद्विरमणम्॥६॥[सूत्र॥१२॥] . पदार्थान्वयः-भंते-हे भगवन् ! अहावरे-अब छ8-छठे वए-व्रत के विषय में राइभोयणाओ-रात्रि-भोजन से वेरमणं-निवृत्त होना है भंते-हे भगवन् ! राइभोयणं-रात्रिभोजन का सव्वं-सर्व प्रकार से पच्चक्खामि-मैं प्रत्याख्यान करता हूँ से-जैसे कि असणं वाअन्नादि अथवा पाणं वा-पानी अथवा खाइमं वा-खाद्य पदार्थ, अथवा साइमं वा-स्वाद्य पदार्थ सयं-स्वयं राइं-रात्रि के समय नेव भुंजिज्जा-नहीं भोजन करूँ नेव-नहीं अन्नेहिं-औरों से राइं-रात्रि में भुंजाविज्जा-भोजन कराऊँन-नहीं राइं भुंजंतेवि-रात्रि-भोजन करते हुए भी अन्नेऔरों को न समणुजाणामि-अनुमोदना नहीं करूँ जावज्जीवाए-जीवन पर्यन्त तिविहं-त्रिविध तिविहेणं-त्रिविध से मणेणं-मन से वायाए-वचन से काएणं-काय से न करेमि-न करूँ न कारवेमि-न कराऊँ न-नहीं करंतंपि अन्नं-करते हुए अन्य की भी समणुजाणामि-अनुमोदना करूँ तस्स-उसका भंते-हे भगवन् ! पडिक्कमामि-मैं प्रतिक्रमण करता हूँ निंदामि-निंदा करता चतुर्थाध्ययनम्] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [59