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________________ तथा इनके मिश्रामिश्र भेद से इसके भी अनेक भेद होते हैं। यों तो चारित्र-धर्म की प्रत्येक क्रियाएँ अपना-अपना विशिष्ट महत्त्व रखती हैं; क्योंकि चारित्र-धर्म की महिमा ही अपरम्पार है। मोक्ष के सम्यक्-दर्शन और सम्यक्-ज्ञान तो साधन हैं, लेकिन चारित्र साधनतम है। अस्तु / चारित्र-धर्म के समस्त भेदों में से मैथुन-परित्याग नाम का महाव्रत अत्यन्त अद्भुत शक्ति रखता है। इसके प्रताप से अनेक अकल्पित कार्य सुतरां सिद्ध हो जाते हैं। इसके बिना समस्त जप, तप अकार्यकारी हो जाते हैं। इसके पालन में भी मुनियों को भारी कठिनता का सामना करना पड़ता है, जैसा कि द्वितीयाध्ययन में वर्णन किया जा चुका है। इसमें सन्देह नहीं कि इसके पूर्ण-विशुद्धरूप से पालन करने से मुनि परम पूज्य और मोक्षाधिकारी के सर्वथा योग्य बन जाता है। उत्थानिका-अब सूत्रकार पञ्चम महाव्रत के विषय में कहते हैं: अहावरे पंचमे भंते ! महव्वए परिग्गहाओ वेरमणं। सव्वं भंते ! परिग्गहं पच्चक्खामि। से अप्पं वा, बहुं वा, अणुं वा, थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा; नेव सयं परिग्गहं परिगिण्हिज्जा, नेवऽन्नेहिं परिग्गहं परिगिण्हाविज्जा, परिग्गहं परिगिण्हंते वि अन्ने न समणुजाणामि; जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं, वायाए, काएणं; न करेमि, न कारवेमि, करंतंपि अन्नं न समणुजाणामि। तस्स भंते ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि। पंचमे भंते ! महव्वए उवट्ठिओमि सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं॥५॥[सूत्र // 11 // ] __अथापरस्मिन् पञ्चमे भदन्त ! महाव्रते परिग्रहाद्विरमणम्। सर्वं भदन्त ! परिग्रहं प्रत्याख्यामि। अथ अल्पं वा, बहुं वा, अणुं वा, स्थूलंवा, चित्तवन्तं वा, अचित्तवन्तं वा; नैव स्वयं परिग्रहं परिगृह्णामि, नैवान्यैः परिग्रहं परिग्राहयामि, परिग्रहं परि-गृह्णतोऽप्यन्यान् न समनुजानामि; यावज्जीवं त्रिविध त्रिविधेन, मनसा, वाचा, कायेन; न करोमि, नकारयामि, कुर्वतोप्यन्यान्न समनुजानामि। तस्य भदन्त ! प्रतिक्रामामि, निन्दामि, गहें, आत्मानं व्युत्सृजामि। पञ्चमे भदन्त ! महाव्रते उपस्थितोऽस्मि सर्वस्मात् परिग्रहाद्विरमणम्॥५॥ [ सूत्र // 11 // ] चतुर्थाध्ययनम्] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [57
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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