________________ अहावरेदुच्चे भंते ! महव्वए मुसावायाओ वेरमणं। सव्वं भंते ! मुसावायं पच्चक्खामि ।से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा, नेव सयं मुसं वइज्जा, नेवऽन्नेहिं मुसं वायाविज्जा, मुसं वयंतेऽवि अन्ने न समणुजाणामि, जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं, वायाए, काएणं, न करेमि, न कारवेमि, करंतंपि अन्नं न समणुजाणामि। तस्स भंते ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि। दुच्चे भंते ! महव्वए उवट्ठिओमि सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं॥२॥[सूत्र॥८॥] __ अथापरस्मिन् द्वितीये भदन्त ! महाव्रते मृषावादाद्विर-मणम्। सर्वं भदन्त ! मृषावादं प्रत्याख्यामि। अथ क्रोधाद्वा लोभाद्वा भयाद्वा हास्याद्वा, नैव स्वयं मृषा वदामि, नैवाऽन्यैर्मृषा वादयामि, मृषा वदतोऽप्यन्यान्न समनुजानामि, यावजीवं त्रिविधं त्रिविधेन, मनसा, वाचा, कायेन, न करोमि, न कारयामि, कुर्वन्तमप्यन्यं न समनुजानामि। तस्य भदन्त ! प्रतिक्रामामि, निन्दामि, गहें, आत्मानं व्युत्सृजामि। द्वितीये भदन्त ! महाव्रते उपस्थितोऽस्मि सर्वस्मात् मृषावादाद्विरमणम् ॥२॥[सूत्र // 8 // ] . पदार्थान्वयः-अह-अब भंते-हे भदन्त ! मुसावायाओ-मृषावाद से अर्थात् असत्य से वेरमणं-निवृत्तिरूप अवरे-अन्य दुच्चे-द्वितीय महव्वए-महाव्रत के विषय में श्री भगवान् ने कथन किया है, अतः भंते-हे गुरो ! सव्वं-सब मुसावायं-मृषावाद का पच्चक्खामि-मैं प्रत्याख्यान करता हूँ से-जैसे कि कोहा वा-क्रोध से, अथवा लोहा वा-लोभ से अथवा भया वा-भय से अथवा हासा वा-हास्य से नेव-नहीं सयं-स्वयं मैं मुसं-मृषावाद वइज्जा-बोलूँ नेव-नहीं अन्नेहिं-औरों से मुसं-मृषावाद वायाविज्जा-बुलाऊँ मुसं वयंतेऽवि अन्ने-असत्य बोलते हुए भी औरों को न समणुजाणामि-भला नहीं समझूजावजीवाए-जीवन पर्यन्त तिविहंत्रिविध तिविहेणं-त्रिविध से मणेणं-मन से वायाए-वचन से काएणं-काय से न करेमि-न करूँ न कारवेमि-न कराऊँ करंतंपि अन्नं-करते हुए औरों को भी न समणुजाणामि-न भला समझू भंते-हे भगवन् ! तस्स-उसका-असत्यरूप दण्ड का पडिक्कमामि-मैं प्रतिक्रमण करता हूँ निंदामि-निंदा करता हूँ गरिहामि-गर्हणा करता हूँ अप्पाणं-अपनी पाप रूप आत्मा का वोसिरामिपरित्याग करता हूँ भंते-हे भगवन् ! दुच्चे-द्वितीय महव्वए-महाव्रत के विषय में, जो कि सव्वाओ५२]] दशवैकालिकसूत्रम् - [चतुर्थाध्ययनम्