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________________ कर्म का बन्ध होना मानते हैं। उसके खण्डन के लिए सूत्रकार ने 'तिविहं तिविहेणं मणेणं, वायाए, काएणं-त्रिविधं त्रिविधेन मनसा, वाचा, कायेन' पद दिए हैं। अर्थात् कर्म का बन्ध सिर्फ मन से ही नहीं होता , बल्कि मन, वचन और काय, तीनों से होता है। ___उत्थानिका-त्रिकरण और त्रियोग से पाँचों पापों के त्याग करने से पाँच महाव्रत हो जाते हैं। इसलिए अब उन्हीं का स्वरूप कहते हैं। उनमें से सब से पहला जो 'अहिंसा महाव्रत' है, सूत्रकार उसी का वर्णन करते हैं: पढमे भंते ! महव्वए पाणाइवायाओ वेरमणं। सव्वं भंते ! पाणाइवायं पच्चक्खामि। से सुहुमं वा, बायरं वा, तसं वा, थावरं वा, नेव सयं पाणे अइवाइज्जा, नेवऽन्नेहिं पाणे अइवायाविज्जा, पाणे अइवायंतेवि अन्ने न समणुजाणामि, जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं, वायाए, काएणं, न करेमि, न कारवेमि, करंतंपि अन्नं न समणुजाणामि। तस्स भंते ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि। पढमे भंते ! महव्वए उवट्ठिओमि सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं॥१॥ [सूत्र // 7 // ] __प्रथमे भदन्त ! महाव्रते प्राणातिपाताद्विरमणम्। सर्वं भदन्त ! प्राणातिपातं प्रत्याख्यामि। अथ सूक्ष्मं वा, बादरं वा, त्रसंवा, स्थावरं वा, नैव स्वयं प्राणानतिपातयामि, नैवान्यैः प्राणानतिपातयामि, प्राणानतिपातयतोऽप्यन्यान्न समनुजानामि, यावज्जीवं त्रिविधं त्रिविधेन, मनसा, वाचा, कायेन, न करोमि, न कारयामि, कुर्वन्तमप्यन्यं न समनुजानामि। तस्य भदन्त ! प्रतिक्रामामि, निन्दामि, गर्हे, आत्मानं व्युत्सृजामि। प्रथमे भदन्त! महाव्रते उपस्थितोऽस्मि सर्वस्मात् प्राणातिपाताद्विरमणम्॥१॥[ सूत्र // 7 // ] पदार्थान्वयः-भंते-हे भदन्त ! पढमे-पहले महव्वए-महाव्रत में पाणाइवायाओप्राणातिपात से वेरमणं-निवृत्ति करना है भंते-हे भदन्त ! सव्वं-सर्व प्रकार पाणाइवायं-प्राणातिपात का पच्चक्खामि-मैं प्रत्याख्यान करता हूँ से-जैसे कि सुहुमं वा-सूक्ष्म शरीर वाले जीव के अथवा . 1 'मन एव मनुष्याणां, कारणं वन्धमोक्षयोः।' चतुर्थाध्ययनम्] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [49
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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