________________ पृथिवीचित्तवत्याख्याता अनेकजीवा पृथक्सत्त्वा अन्यत्र शस्त्रपरिणतायाः। आपः चित्तवत्यः आख्याताः अनेकजीवाः पृथक्सत्त्वाः अन्यत्र शस्त्रपरिणताभ्यः। तेजः चित्तवदाख्यातम् अनेकजीवं पृथक्-सत्त्वम् अन्यत्र शस्त्रपरिणतात्। वायुः चित्तवानाख्यातः अनेक जीवः पृथक्सत्त्वः अन्यत्र शस्त्रपरिणतात्। वनस्पतिः चित्तवानाख्यातः अनेकजीवः पृथक्सत्त्वः अन्यत्र शस्त्रपरिणतात् / तद्यथा-अग्रबीजाः, मूलबीजाः, पर्वबीजाः, स्कन्धबीजाः, बीजरुहाः, संमूच्छिमाः, तृणलताः, वनस्पतिकायिकाः सबीजाः चित्तवन्तः आख्याताः अनेकजीवाः पृथक्सत्त्वाः अन्यत्र शस्त्रपरिणतेभ्यः॥४॥ पदार्थान्वयः-तं जहा-जैसे कि पुढवीकाइया-पृथ्वी-काय के जीव आउकाइयाअप्-काय के जीव तेउकाइया-तेजस्काय के जीव वाउकाइया-वायु-काय के जीव वणस्सइकाइया-वनस्पति-काय के जीव तसकाइया-त्रस-काय के जीव पढवी चित्तमंतमक्खाया-पृथ्वी सचित्त कही गई है अणेगजीवा-अनेक जीव वाली है पुढोसत्तापृथक्-पृथक् सत्त्व वाली है सत्थपरिणएणं-शस्त्र-परिणत के अन्नत्थ-बिना आऊ-अप्कायिक चित्तमंतमक्खाया-चेतना लक्षण वाले कथन किए गए हैं अणेग़जीवा-अनेक-जीव हैं पुढोसत्तापृथक्-सत्त्व हैं सत्थपरिणएणं-शस्त्र-परिणत को अन्नत्थ-छोड़कर तेऊ-तेजस्कायिक चित्तमंतमक्खाया-चेतना लक्षण वाले कथन किए गए हैं अणेगजीवा-अनेक-जीव हैं पुढोसत्तापृथक्-सत्त्व है सत्थपरिणएणं-शस्त्र-परिणत को अन्नत्थ-छोड़कर वाऊ-वायु-काय के जीव चित्तमंतमक्खाया-चेतना लक्षण वाले कथन किए गए हैं अणेगजीवा-अनेक-जीव हैं, किन्तु पुढोसत्ता-पृथक् सत्त्व हैं सत्थपरिणएणं-शस्त्र-परिणत को अन्नत्थ-छोड़कर वणस्सइ-वनस्पतिकाय के जीव चित्तमंतमक्खाया-चेतना लक्ष पंतमक्खाया-चेतना लक्षण वाले कथन किए गए हैं अणेगजीवा-अनेक-जीव हैं पुढोसत्ता-किन्तु पृथक्-पृथक् सत्त्व हैं सत्थपरिणएणं-शस्त्र-परिणत को अन्नत्थ-छोड़कर तं जहा-जैसे कि अग्गबीया-अग्र भाग पर बीज मूलबीया-मूलभाग में बीज पोरबीया-पर्व में बीज खंधबीया-स्कन्ध में बीज बीयरुहा-बीज बोने से बीज उत्पन्न होते हैं संमुच्छिमा-सम्मूछिमअपने आप होने वाले तण-तृण लया-लतादि वणस्सइकाइया-वनस्पतिकायिक हैं सबीया-बीज के साथ चित्तमंतमक्खाया-चेतना लक्षण वाले कथन किए गए हैं अणेगजीवा-अनेक-जीव हैं पुढोसत्ता-किन्तु पृथक्-पृथक् सत्त्व हैं सत्थपरिणएणं-शस्त्र-परिणत को अन्नत्थ-छोड़कर। मूलार्थ-जैसे कि-१ पृथ्वीकायिक, 2 अप्कायिक,३ तेजस्कायिक, 4 वायुकायिक, 5 वनस्पतिकायिक,६ त्रसकायिक / पृथ्वीकायिक जीव चेतना वाले कथन किए गए हैं, अनेक जीव पृथक रूप से उसमें आश्रित हैं, शस्त्र परिणत को छोड़कर। अप्कायिक जीव चेतना वाले कथन किए गए हैं, अनेक जीव पृथक् रूप से उसमें आश्रित हैं, शस्त्र-परिणत को छोड़कर।तेजस्काय के जीव चेतना वाले कथन किए गए हैं, अनेक जीव पृथक् रूप से उसमें आश्रित हैं, शस्त्र-परिणत को छोड़कर। वायु-काय के जीव 42] दशवैकालिकसूत्रम् [चतुर्थाध्ययनम्