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________________ पदार्थान्वयः-इमा-वह वक्ष्यमाण खलु-निश्चय से सा-वह छज्जीवणिया-षड्जीव-निकाय नामज्झयणं-नामक अध्ययन समणेणं-श्रमण तपस्वी भगवया-भगवान महावीरेणं-महावीर स्वामी कासवेणं-काश्यपगोत्री ने पवेइया-स्वयं ज्ञान में जानकर सुअक्खाया-वर्णन किया सुपण्णत्ता-भलीभाँति बतलाया, जिसका अहिज्जिउं-अध्ययन करना मे-मुझे सेयं-कल्याणकारी है और जो अज्झयणं-अध्ययन धम्मपण्णत्ती-धर्मप्रज्ञप्तिरूप है। . मूलार्थ-यह वक्ष्यमाण षड्-जीव-निकाय नामक अध्ययन श्रमण भगवान् श्रीमहावीर स्वामी काश्यपगोत्री ने स्वयं ज्ञान से जानकर जनता के सामने द्वादश प्रकार की परिषद में प्रकट किया, फिर भलीभाँति बतलाया। उस अध्ययन का अध्ययन करना मेरे लिए कल्याणकारी है, क्योंकि वह धर्म-प्रज्ञप्तिरूप है। टीका-उक्त गुरु-शिष्यों के प्रश्नोत्तर से यह बात भलीभाँति सिद्ध हो जाती है कि शिष्य अपनी अहंवृत्ति को छोड़कर विनयपूर्वक गुरु के निकट अपनी शङ्काओं को कहे और गुरु को भी उचित है कि वे विनीत शिष्य की शङ्काओं का समाधान भलीभाँति कर दें। इतना ही नहीं, बल्कि गुरु को उचित है कि वे विनीत शिष्य को और सब प्रकार से योग्य बनाने के लिए सदैव लक्ष्य देते रहें। उत्थानिका-गुरु फिर इस प्रकार कहने लगे कि: तं जहा–पुढवीकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, तसकाइया। पुढवी चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं।आऊ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं। तेऊ चित्तमंतमक्खाया अणेग- जीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं।वाऊ चित्त- मंतमक्खाया अणेगजीवा. पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिण-एणं। वणस्सइ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं। तं जहा–अग्गबीया, मूलबीया, पोरबीया, खंधबीया, बीयरुहा, संमुच्छिमा, तणलया, वणस्सइकाइया सबीया चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं॥४॥ - तद्यथा-पृथिवीकायिकाः अप्कायिकाः, तेजस्कायिकाः, वायुकायिकाः, वनस्पतिकायिकाः, त्रसकायिकाः। चतुर्थाध्ययनम्] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [41
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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