________________ होती है। इसलिए इस अध्ययन का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है। उत्थानिका-इस प्रकार गुरु के कहे जाने पर शिष्य ने प्रश्न किया कि वह अध्ययन कौन-सा है ? कयरा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, सुअक्खाया, सुपण्णत्ता, सेयं मे अहिजिउं अज्झयणं धम्मपण्णत्ती // 2 // - कतरा खलु सा षड्जीवनिका नामाध्ययनं श्रमणेन भगवता महावीरेण काश्यपेन प्रवेदिता, स्वाख्याता, सुप्रज्ञप्ता, श्रेयो मेऽध्येतुमध्ययनं धर्मप्रज्ञप्तिः॥२॥ ___ पदार्थान्वयः-छज्जीवणिया-षड्-जीव-निकाय नाम-नामक सा-वह कयरा-कौनसा खलु-निश्चय से अज्झयणं-अध्ययन है, जो समणेणं-श्रमण भगवया-भगवान् महावीरेणं-- महावीर स्वामी कासवेणं-काश्यप गोत्री ने पवेइया-ज्ञान से जानकर सुअक्खाया-भलीभाँति वर्णन किया सुपण्णत्ता-भली भाँति प्रज्ञप्त किया धम्मपण्णत्ती-वह धर्म-प्रज्ञप्तिरूप है मे-मुझे अहिजिउं-अध्ययन करना अज्झयणं-उस अध्ययन का सेयं-योग्य है। ___ मूलार्थ-षड्-जीव-निकाय नाम का वह कौन-सा अध्ययन है जो काश्यप- . गोत्रिय श्रमण भगवान् श्री महावीर ने ज्ञान से जानकर परिषद् में वर्णन किया है, जिसमें धर्म की प्रज्ञप्ति है, जिसका अध्ययन करना मुझे योग्य है। ____टीका-उक्त सूत्र में गुरु-शिष्य के प्रश्नोत्तर द्वारा इस अध्ययन का प्रारम्भ किया गया है। इसमें सन्देह नहीं कि जनता ने परमात्मा की स्तुति करने के लिए अनेक मन्त्रादि कल्पित कर रक्खे हैं, लेकिन महाव्रतों को धारण करने के लिए एक भी विधान-युक्त शास्त्र सामने नहीं है। जनता का भी उधर लक्ष्य नहीं है। यह अध्ययन उसी सर्वविरतिरूप चारित्र का-महाव्रतों का वर्णन करने वाला है। उत्थानिका-अब शिष्य के प्रश्न को सुनकर गुरु कहने लगे किः इमा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समजेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, सुअक्खाया, सुपण्णत्ता, सेयं मे अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मपण्णत्ती॥३॥ इमा खलु सा षड्जीवनिका नामाध्ययनं श्रमणेन भगवता महावीरेण काश्यपेन प्रवेदिता,स्वाख्याता, सुप्रज्ञप्ता,श्रेयो मेऽध्येतुमध्ययनं धर्मप्रज्ञप्तिः॥३॥ 1 तथा च-'धर्मप्रज्ञप्तिः,प्रज्ञपनं प्रज्ञप्तिः। धर्मस्य प्रज्ञप्तिः धर्मप्रज्ञप्तिः। ततो धर्मप्रज्ञप्तेः कारणाच्चेतसो विशुद्ध्यापादनम्। चेतसो विशुद्ध्यापादनाच्च श्रेय आत्मनोऽध्येतुरिति'-टीकाकारः। * 40] दशवैकालिकसूत्रम् [चतुर्थाध्ययनम्