________________ अह नवमं अज्झयणं अथ नवम अध्याय .. इस अध्ययन में श्री महाचन्द्र कुमार का जीवनवृत्तान्त वर्णित हुआ है। इस का पदार्थ भी पूर्व अध्ययनों के समान ही है, केवल नाम और स्थानादि में अन्तर है, जो कि नीचे के सूत्रपाठ से ही सुस्पष्ट हो जाता है मूल-नवमस्स उक्खेवो। चम्पा नगरी। पुण्णभद्दे उज्जाणे। पुण्णभद्दे जक्खे।दत्ते राया।रत्तवई देवी।महचंदे कुमारे जुवराया।सिरीकंतापामोक्खाणं पंचसयाणं रायवरकन्नगाणं पाणिग्गहणं। जाव पुव्वभवे तिगिच्छिया णगरी। जितसत्तू राया। धम्मवींरिए अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। निक्खेवो। ॥नवमं अज्झयणं समत्तं॥ छाया-नवमस्योत्क्षेपः। चम्पा नगरी / पूर्णभद्रमुद्यानम् / पूर्णभद्रो यक्षः। दत्तो राजा। रक्तवती देवी। महाचन्द्रः कुमारो युवराजः। श्रीकान्ताप्रमुखाणां पंचशतानां राजवरकन्यकानां पाणिग्रहणम् / यावत् पूर्वभवः। चिकित्सिका नगरी। जितशत्रू राजा। धर्मवीर्योऽनगारः प्रतिलाभितो यावत् सिद्धः। निक्षेपः। ॥नवममध्ययनं समाप्तम्॥ पदार्थ-नवमस्स-नवम। अज्झयणस्स-अध्ययन का। उक्खेवो-उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्ववत् जानना चाहिए। चंपा नगरी-चंपा नाम की नगरी थी, वहां। पुण्णभद्दे-पूर्णभद्र नामक। उज्जाणे-उद्यान था, उस में। पुण्णभद्दे-पूर्णभद्र / जक्खे-यक्ष का स्थान था। दत्ते-दत्त नाम का। राया-राजा था। रत्तवईरक्तवती। देवी-देवी-रानी थी। महचंदे-महाचन्द्र। कुमारे-कुमार / जुवराया-युवराज था। सिरीकंतापामोक्खाणं-श्रीकान्ताप्रमुख।पंचसयाणं-५०० / रायवरकन्नगाणं-श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ। पाणिग्गहणं-पाणिग्रहण हुआ।जाव-यावत्। पुव्वभवे-पूर्वभव की पृच्छा की गई। तिगिच्छिया-चिकित्सिका नामक। णगरी-नगरी थी। जितसत्तू-जितशत्रु नामक। राया-राजा था। धम्मवीरिए-धर्मवीर्य / अणगारे द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [987