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________________ देवी के गर्भ से महाबल के रूप में उत्पन्न हुआ। तथा इस भव में मुनिधर्म के अनुष्ठान से सुबाहुकुमार की भाँति सब प्रकार के कर्मबन्धनों का विच्छेद कर के इसी जन्म में मोक्षगामी बनेगा। उक्षेप शब्द प्रस्तावना का बोधक है। प्रस्तावना सूत्रकार के शब्दों में-जाणं भंते / समणेण भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणे सुहविवागाणं णास्स अापणस अपम8 पण्णते, सत्तमस्स भते / अायणस्स समणेण भगवया महावीरेण जाव संपत्तण के अ पण्णते?-अर्थात् जम्बू स्वामी अपने परमपूज्य गुरुदेव श्री सुधर्मा स्वामी से निवेदन करने लगे कि भगवन् / यदि यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने सुखविपाक के छठे अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ प्रतिपादन किया है तो भगवन् / यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर नै सुखविपाक के सप्तम अध्ययन का क्या अर्थ फरमाया है ? इस प्रकार है। तथा निक्षेप शब्द उपसंहार का सूचक है। उपसंहाररूप सूत्रपाठ निनोक्त है. एवं खलु जम्बू / समणेण भगवया महावीरेण जाव संपत्तेण सुहविवागाणं सत्तमस्स अापणस्स अपमढे पण्णत्तेति बेमि। अर्थात् श्री सुधर्मा स्वामी कहने लगे कि है जम्बू ! यावत् मोक्षसंप्राप्त भगवान् महावीर स्वामी ने सुखषिपाक के सप्तम अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ फरमाया है। इस प्रकार मैं कहता हूँ। अर्थात् हे जम्बू | मैंने जो कुछ कहा है वह प्रभु वीर के कथनानुसार ही कहा है, इस में मेरी अपनी ओर से कोई कल्पना नहीं की गई . -तिथपरागमर्ण जाव पुष्वभवो-यहाँ पठित जाव-पावत् पद-तीर्थकर भगवान् के आने के पश्चात् बलनरेश तथा जनता एवं महाबल कुमार आदि का आना, उपदेश सुनना, उपदेश सुनने के अनन्तर महाबल कुमार का भगवान् से श्रावकधर्म का अंगीकार करना आदि सुबाहुकुमार के अध्ययन में वर्णित विस्तृत कथासन्दर्भ का तथा "-पडिलाभिए जाब सिद्धे" यहाँ पठित जाब-पावत् पद-नागदत्त गाथापति का इन्द्रदत्त मुनि का पारणा कराने के अनन्तर मनुष्य आयु का बोधना, संसार को परिमित करना और वहां से मृत्यु को प्राप्त हो जाने के अनन्तर महापुर नगर में महाराज बल के घर में महाबल के रूप में उत्पन्न होना और भगवान् . महावीर स्वामी के पास दीक्षित होना आदि सुबाहुकुमार के अध्ययन में वर्णित वृत्तान्त का परिचायक है / अन्तर मात्र इतना ही है कि सुबाहुकुमार देवलोक तथा मनुष्य लोक मैं कई एक जन्म ले कर अन्त मैं महाविदेह क्षेत्र में साधु हो कर मुक्तिलाभ करेंगे जब कि महाबल कुमार प्रभु चौर के चरणों में दीक्षित हो कर इसी जन्म में सिद्ध हो गए। ऊपर के कथासन्दर्भ से यह भलीभाँति प्रमाणित हो जाता है कि सुपात्र को दिया गया द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विधाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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