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________________ का वर्णन किया था, प्रस्तुत कथासंदर्भ से उस की सम्यग् रूप से उपपत्ति हो जाती है। ___उत्क्षेप का अर्थ है-प्रस्तावना। प्रस्तुत में प्रस्तावनारूप सूत्रांश-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं चउत्थस्स अल्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। पंचमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ?-अर्थात् श्री जम्बू स्वामी अपने गुरुदेव श्री सुधर्मा स्वामी से कहने लगे कि यदि भदन्त ! यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के चतुर्थ अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ फरमाया है तो भगवन् ! यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के पञ्चम अध्ययन का क्या अर्थ फरमाया है ?-" - निक्षेप का अर्थसम्बन्धी ऊहापोह पीछे किया जा चुका है। निक्षेप शब्द से संसूचित सूत्रपाठ निम्नोक्त है___ एवंखलु जम्बू!समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते।त्ति बेमि। अर्थात् सुधर्मा स्वामी कहने लगे कि हे जम्बू ! यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के पञ्चम अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ प्रतिपादन किया है। इस प्रकार मैं कहता हूँ अर्थात् जैसा मैंने भगवान् से सुना है वैसा तुम्हें सुना दिया है। इस में मेरी अपनी कोई कल्पना नहीं है। . -पडिलाभिए जाव सिद्धे-यहां पठित जाव-यावत् पद-मेघरथ राजा का संसार को परिमित करने के साथ-साथ मनुष्यायु को बांधना, मृत्यु के अनन्तर उस का जिनदास के रूप में अवतरित होना, गौतम स्वामी का भगवान् महावीर से-जिनदास आप श्री के चरणों में दीक्षित होगा या नहीं ?-ऐसा पूछना, भगवान् का-हां होगा, ऐसा उत्तर देना तथा विहार कर जाना, जिनदास का तेला पौषध करना, उस में भगवान् के चरणों में साधु बनने का निश्चय करना, तदनन्तर भगवान् महावीर स्वामी का वहां पर पधारना तथा जिनदास का माता-पिता से आज्ञा ले कर दीक्षित हो कर आत्मसाधना में संलग्न होना तथा समय आने पर केवलज्ञान को प्राप्त करना, आदि भावों का परिचायक है। सुबाहुकुमार और जिनदास के जीवनवृत्तान्त में इतना ही अन्तर है कि सुबाहुकुमार प्रथम देवलोक से च्युत हो कर अनेकों भव करके महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध पद प्राप्त करेंगे जब कि जिनदास उसी जन्म में सिद्ध हो गए। ॥पंचम अध्ययन समाप्त॥ द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / पञ्चम अध्याय [976 [975
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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