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________________ . // तृतीयमध्ययनं समाप्तम्॥ - पदार्थ-तच्चस्स-तृतीय अध्ययन का। उक्खेवो-उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्व की भांति जान लेना चाहिए। वीरपुरं-वीरपुर। णगरं-नगर था। मणोरमं-मनोरम। उज्जाणं-उद्यान था। वीरकण्हमित्तेवीरकृष्णमित्र। राया-राजा था। सिरीदेवी-श्रीदेवी थी। सुजाए-सुजात। कुमारे-कुमार था। बलसिरीपामोक्खाणं-बलश्रीप्रमुख।पंचसयकन्नगाणं-पांच सौ श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ / पाणिग्गहणंपाणिग्रहण-विवाह हुआ। सामी-महावीर स्वामी। समोसरिए-पधारे। पुव्वभवपुच्छा-पूर्वभव की पृच्छा की गई। उसुयारे-इक्षुसार नामकाणगरे-नगर था। उसभदत्ते-ऋषभदत्त / गाहावई-गाथापति-गृहस्थ था। पुष्पंदत्ते-पुष्पदत्त / अणगारे-अनगार। पडिलाभिए-प्रतिलाभित किए। माणुस्साउए निबद्धे-मनुष्यायु का बन्ध किया। इह-यहां / उप्पन्ने-उत्पन्न हुआ। जाव-यावत् / महाविदेहे-महाविदेह क्षेत्र में। सिज्झिहिइ ५-सिद्ध होगा, 5 / निक्खेवो-निक्षेप-उपसंहार की कल्पना पूर्व की भांति कर लेनी चाहिए। तइयंतृतीय। अज्झयणं-अध्ययन / समत्तं-समाप्त हुआ। मूलार्थ-तृतीय अध्ययन का उत्क्षेप पूर्व की भांति जान लेना चाहिए। जम्बू ! वीरपुर नामक नगर था। वहां मनोरम नाम का उद्यान था। महाराज वीरकृष्णमित्र राज्य किया करते थे। उन की रानी का नाम श्रीदेवी था।सुजात नाम का कुमार था। बलश्रीप्रधान पांच सौ श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ उस-सुजात कुमार का पाणिग्रहण हुआ। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे। सुजात कुमार का गृहस्थधर्म स्वीकार करना, भगवान् गौतम द्वारा उस का पूर्वभव पूछना। भगवान् का प्रतिपादन करना कि इक्षुसार नगर था। वहां ऋषभदत्त गाथापति निवास किया करता था। उसने पुष्पदत्त अनगार को प्रतिलाभित किया-आहारदान दिया।मनुष्य की आयु को बान्धा।आयु पूर्ण होने पर यहां सुजातकुमार के रूप में वीरपुर नामक नगर में उत्पन्न हुआ। यावत् महाविदेह क्षेत्र में चारित्र ग्रहण कर सिद्धपद प्राप्त करेगा-सिद्ध होगा।निक्षेप की कल्पना पूर्व की भांति कर लेनी चाहिए। . ॥तृतीय अध्ययन समाप्त॥ टीका-प्रस्तावना तथा उपसंहार ये दोनों पदार्थ वर्णनशैली के मुख्य अंग हैं। इस सम्बन्ध में पहले भी कहा जा चुका है। प्रस्तुत में सूत्रकार के शब्दों में प्रस्तावना जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणंजाव सम्पत्तेणंसुहविवागाणं बितियस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। तइयस्स णं भंते ! अज्झयणस्स सुहविवागाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सम्पत्तेणं के अटे पण्णत्ते?-इस प्रकार है। अर्थात् भदन्त ! यदि यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के दूसरे अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ वर्णन किया है तो भदन्त ! यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने सुखविपाक के तीसरे अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [965
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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