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________________ इस प्रकार सुबाहुकुमार के जीवनवृत्तान्त को सुनाने के बाद आर्य सुधर्मा स्वामी बोले कि हे जम्बू ! इस प्रकार मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है। जम्बू ! प्रभु वीर के पावन चरणों में रह कर जैसा मैंने सुना था वैसा ही तुम्हें सुना दिया, इस में मेरी अपनी कोई कल्पना नहीं है। इस के मूलस्रोत तो परम आराध्य मंगलमूर्ति भगवान् महावीर स्वामी ही हैं। आर्य सुधर्मा स्वामी के इस कथन में प्रस्तुत अध्ययन की प्रामाणिकता सिद्ध की गई है। सर्वज्ञभाषित होने से उस का प्रामाण्य सुस्पष्ट है। ___-समणेणं जाव संपत्तेणं-यहां पर उल्लेख किए गए जाव-यावत् पद से अभिमत पदों का वर्णन पूर्व में कर दिया गया है। सुख प्राप्ति के लिए कहीं इधर-उधर भटकने की आवश्यकता नहीं है। उस की उपलब्धि अपनी ही ओर देखने से, अपने में ही लीन होने से होती है। बाह्य पदार्थ सुख के कारण नहीं बन सकते, उन में जो सुख मिलता है, वह सुख नहीं, सुखाभास है, सुख की भ्रान्त कल्पना है। मधुलिप्त असिधारा (शहद से लिपटी हुई तलवार की धारा) को चाटने से क्षणिक सुख का आभास जरूर होता है किन्तु उस का परिणाम सुखावह नहीं होता। मधुर रस के आस्वादन के साथ-साथ जिह्वा का भेदन भी होता चला जाता है। यही बात संसार की समस्त सुखजनक सामग्री की है। जब सुख के साधन अचिरस्थायी और विनश्वर हैं तो उन से प्राप्त होने वाला सुख स्थायी कैसे हो सकता है ? इस के अतिरिक्त ज्ञानी पुरुषों का यह कथन सोलह आने सत्य है कि संसारवर्ती राजपाट, महल अटारी, गाड़ी, घोड़ा, वस्त्राभूषण, और भोजनादि जितने भी पदार्थ हैं, उन में अनुराग या आसक्ति ही स्थायी दुःख का कारण है। इन से विरक्त हो कर आत्मानुराग ही वास्तविक सुख का यथार्थ साधन है। मानव प्राणी इन बाह्य पदार्थों से जितना भी मोह कम करेगा, उतना ही वास्तविक सुख की उपलब्धि में अग्रेसर होगा और आध्यात्मिक शान्ति को प्राप्त करता चला जाएगा। सांसारिक पदार्थों के संसर्ग में रागद्वेषजन्य व्याकुलता का अस्तित्व अनिवार्य है और जहां व्याकुलता है, वहां कभी सुख का क्षणिक आभास भले हो परन्तु सुख नहीं है, निराकुलता नहीं है। इसलिए स्थायी सुख या निराकुलता प्राप्त करने के लिए सांसारिक पदार्थों के संसर्ग अर्थात् इन पर से अनुराग का त्याग करना परम आवश्यक है। बस यही प्रस्तुत अध्ययनगत सुबाहुकुमार के कथासन्दर्भ का रहस्यमूलक ग्रहणीय सार है। श्री सुबाहुकुमार का जीवनवृत्तान्त साधकों या मुमुक्षु जनों को सर्वथा उपादेय है। शाश्वत सुख के अभिलाषियों के लिए सुप्रसिद्ध राजमार्ग है। जो साधक विकास की ओर द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [955
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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