________________ नय और प्रमाण से होने वाला जीवादि पदार्थों का यथार्थ बोध ज्ञानभावसमाधि है।३-सम्यग् ज्ञान पूर्वक काषायिक भाव राग, द्वेष और योग की निवृत्ति होकर जो स्वरूपरमण होता है वही चारित्र भावसमाधि है। ४-ग्लानिरहित किया गया तथा पूर्वबद्ध कर्मों का नाश करने वाला तप नामक अनुष्ठानविशेष तपभावसमाधि है। सारांश यह है कि जिस के द्वारा आत्मा सम्यक्तया मोक्षमार्ग में अवस्थित किया जाए वह अनुष्ठान समाधि' कहलाता है। प्रकृत में इसी समाधि का ग्रहण अभिमत है। समाधि को प्राप्त करने वाला व्यक्ति समाधिप्राप्त कहलाता है। कालमास-का अर्थ है-समय आने पर। इस का प्रयोग सूत्रकार ने अकाल मृत्यु के परिहार के लिए किया है। इस का तात्पर्य यह है कि श्री सुबाहुकुमार की अकाल मृत्यु नहीं हुई है। कल्प-इस शब्द के अनेकों अर्थ हैं-१-समर्थ, २-वर्णन, ३-छेदन, ४-करण, ५सादृश्य,६-अधिवास-निवास,७-योग्य,८-आचार, ९-कल्प-शास्त्र, १०-कल्प-राजनीति इत्यादि व्यवहार जिन देवलोकों में हैं वे देवलोक...। इन अर्थों में से प्रकृत में अन्तिम अर्थ का ग्रहण अभिमत है। देवलोक 26 माने जाते हैं। 12 कल्प और 14 कल्पातीत। इन में १-सौधर्म, २ईशान, ३-सनत्कुमार, ४-महेन्द्र, ५-ब्रह्म, ६-लान्तक, ७-महाशुक्र;८-सहस्रार, ९-आनत, १०-प्राणत, ११-आरण, १२-अच्युत, ये बारह कल्प देवलोक कहलाते हैं। तथा कल्पातीतों में पुरुषाकृतिरूप लोक के ग्रीवास्थान में अवस्थित होने के कारण, १-भद्र, २-सुभद्र, ३सुजात, ४-सुमनस, ५-प्रियदर्शन, ६-सुदर्शन, ७-अमोघ, ८-सुप्रतिबद्ध, ९-यशोधर ये 9 ग्रैवेयक कहलाते हैं। सब से उत्तर अर्थात् प्रधान होने से पांच अनुत्तर विमान कहलाते हैं। जैसे कि-१-विजय, २-वैजयंत, ३-जयन्त, ४-अपराजित, ५-सर्वार्थसिद्ध। सौधर्म से अच्युत देवलोक तक के देव, कल्पोपपन्न और इन के ऊपर के सभी देव इन्द्रतुल्य होने से अहमिन्द्र कहलाते हैं। मनुष्य लोक में किसी निमित्त से जाना हुआ तो 1. सम्यगाधीयते-मोक्षः तन्मार्ग वा प्रत्यात्मा योग्यः- क्रियते व्यवस्थाप्यते येन धर्मेणासौ धर्मः समाधिः। (श्री सूत्रकृताङ्गवृत्तौ) 2. कल्पशब्दोऽनेकार्थाभिधायी-वचित्सामर्थ्य , यथा-वर्षाष्टप्रमाणः चरणपरिपालने कल्पः समर्थः इत्यर्थः। कचिद् वर्णनायाम्-यथा-अध्ययनमिदमनेन कल्पितं वर्णितमित्यर्थः / क्वचिच्छेदने-यथा केशान् कर्तर्या कल्पयति-छिनत्ति इत्यर्थः। कचित् करणे-क्रियायाम्-यथा-कल्पिता मयाऽस्याजीविका कृता इत्यर्थः।वचिदौपम्ये-यथा-सौम्येन तेजसा च यथाक्रममिन्दुसूर्यकल्पाः साधवः।क्वचिदधिवासे-यथासौधर्मकल्पवासी शक्रः सुरेश्वरः। उक्तं च-सामर्थ्य वर्णनायां छेदने करणे तथा। औपम्ये चाधिवासे च कल्पशब्दं विदुर्बुधाः॥(बृहत्कल्पसूत्र भाष्यकार) 950 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कंन्ध