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________________ आदि देवों से अधिष्ठित अक्षरपद्धति, ब्रह्म-ब्रह्मचर्य अथवा सब प्रकार का कुशलानुष्ठान-सद् आचरण, वेद-आगम शास्त्र, नय-नैगम आदि नय, नियम-अभिग्रहविशेष, सत्य-सत्यवचन, शौच-द्रव्य से निर्लेप-विशुद्ध और भाव से पाप के आचरण से रहित होना, ज्ञान-मतिज्ञान, श्रुतज्ञानादि पंचविध ज्ञान, दर्शन-चक्षुदर्शन अचक्षुदर्शन आदि चतुर्विध दर्शन, चारित्र-सामायिक आदि पञ्चविध चारित्र, इन सब में प्रधानता रखने वाले थे। तथा जो उदार-प्रधान, घोर-राग द्वेषादि आत्मशत्रुओं के लिए भयानक, घोरव्रत-दूसरों से दुरनुचर व्रतों-महाव्रतों के धारक, घोरतपस्वी-घोर तप के करने वाले, घोरब्रह्मचर्यवासी-घोर ब्रह्मचर्य व्रत के धारक, उत्क्षिप्तशरीरशरीरगत ममत्व से सर्वथा रहित, संक्षिप्तविपुलतेजोलेश्य-अनेक योजनप्रमाण वाले क्षेत्र में स्थित वस्तुओं को भस्म कर देने वाली तेजोलेश्या-घोर तप से प्राप्त होने वाली लब्धिविशेष को अपने में संक्षिप्त-गुप्त किए हुए, चतुर्दश पूर्वी-१४ पूर्वो के ज्ञाता तथा चतुर्ज्ञानोपगतमतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्यवज्ञान इन चार ज्ञानों को प्राप्त हो रहे थे। . . ___ -अहापडिरूवं-का अर्थ है शास्त्रानुमोदित अनगारवृत्ति के अनुसार, और-उग्गहअवग्रहम्-का अवग्रह या आवासस्थान रहने की जगह-यह अर्थ होता है। तथा-उग्गिण्हित्ताका-ग्रहण करके-यह अर्थ समझना चाहिए। तब इस का संकलित अर्थ यह हुआ कि धर्मघोष स्थविर अपने शिष्य परिवार के साथ सहस्राम्रवन नामक उद्यान में शास्त्रविहित साधुवृत्ति के अनुसार आवासस्थान को ग्रहण करके वहां अवस्थित हुए। . -उराले जाव लेस्से-यहां पठित-जाव-यावत् पद से-घोरे घोरगुणे घोरव्वए घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेउ-इत्यादि पदों का ग्रहण करना चाहिए। घोर आदि पदों का अर्थ ऊपर लिखा जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां ये पद श्री धर्मघोष जी महाराज के विशेषण हैं, जबकि प्रस्तुत में श्री सुदत्त मुनि के। नामगतभिन्नता के अतिरिक्त अर्थगत कोई भेद नहीं है। -जहा गोयमसामी तहेव सुहम्मे थेरे आपुच्छइ जाव अडमाणे-इस में पारणे के दिन पहले प्रहर से लेकर हस्तिनापुर में भिक्षार्थ जाने तक का सुदत्त मुनि का जितना वृत्तान्त है, उसे गौतम स्वामी के गतवृत्तान्त की तरह जान लेने का सूत्रकार ने जो निर्देश किया है, तथा जावयावत् पद से गौतमस्वामी के समान किए गए सुदत्त मुनि के आचार के वर्णक पाठ को जो 1. गौतम स्वामी का वर्णन प्रथम श्रुतस्कंधीय द्वितीय अध्याय में किया जा चुका है। पारणे के लिए जिस विधि से वे गए थे उसी विधि का समस्त अनसरण सदत्त मुनि करते हैं। अन्तर मात्र इतना है कि गौतम स्वामी भिक्षा के लिए वाणिजग्राम नगर में जाने से पहले श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से पूछते हैं, जबकि सुदत्त मुनि हस्तिनापुर में भिक्षार्थ जाने के लिए धर्मघोष या सुधर्मा स्थविर से आज्ञा मांगते हैं। नगरादि की नामगत भिन्नता के अतिरिक्त अर्थगत कोई भेद नहीं है। 882 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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