SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 862
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रसन्न रहते हुए आप उत्कृष्ट आयु का उपभोग करें, इष्ट जनों से सम्परिवृत होते हुए चम्पानग़री का तथा अन्य बहुत से ग्रामों-गावों, आकरों-खानों, नगरों-शहरों, खेटों (जिस का कोट मिट्टी का बना हुआ हो उसे खेट कहते हैं), कर्वटों-छोटी बस्ती के स्थानों, मडम्बोंभिन्न-भिन्न बस्ती वाले स्थानों, द्रोणमुखों-जल और स्थल के मार्ग से युक्त नगरों, पत्तनोंकेवल जल के अथवा स्थल के मार्ग वाले नगरों, आश्रमों-तापस आदि के स्थानों, निगमोंव्यापारियों के नगरों, संवाहों-दुर्गविशेषों जहां किसान लोग सुरक्षा के लिए धान्यादि रखते हैं, सन्निवेशों-नगर के बाहर के प्रदेशों, जहां आभीर-दूध बेचने वाले लोग रहते हैं अथवा यात्रियों के पड़ाव, इन सब का आधिपत्य अग्रेसरत्व, भर्तृत्व, स्वामित्व, महत्तरकत्व, आज्ञेश्वरसैनापत्य कराते हुए अथवा स्वयं करते हुए आप बहुत से नाटकों, गीतों, वादित्रों, वीणाओं, तालियों और मेघ जैसी आवाज करने वाले तथा चतुर पुरुषों के द्वारा बजाए गए मृदङ्गों के शब्दों के साथ विशाल भोगों का उपभोग करते हुए विहरण करें-इस प्रकार से कहने के साथ-साथ "-आप की जय हो, विजय हो-" ऐसे शब्द बोलते थे। ___ इस के अनन्तर हजारों नेत्रमालाओं-नयनपंक्तियों के द्वारा अवलोकित, हजारों हृदयमालाओं के द्वारा अभिनन्दित-प्रशंसित, हजारों मनोरथमालाओं के द्वारा अभिलषित, हजारों वचनमालाओं के द्वारा अभिस्तुत आप कान्ति और सौभाग्य रूप गुणों को प्राप्त करें। इस भाँति प्रार्थित हजारों नरनारियों की हजारों अंजलिमालाओं को दाहिने हाथ से स्वीकार करते हुए, अति मनोहर वचनों के द्वारा नागरिकों से क्षेम कुशल आदि पूछते हुए, हजारों भवनपंक्तियों को लांघते हुए श्रेणिकपुत्र चम्पानरेश कूणिक चम्पानगरी के मध्य में से निकलते हुए जहां पर पूर्णभद्र उद्यान था, वहां पर आए, आकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के थोड़ी दूर रहने पर छत्रादिरूप तीर्थंकरों के अतिशय (तीर्थंकरनामकर्मजन्य विशेषताएं) देख कर * प्रधान हाथी को ठहरा कर नीचे उतरते हैं और १-खड्ग-तलवार, २-छत्र, ३-मुकुट, ४-उपानत्-जूता, तथा ५-चमर, इन पांच राजचिन्हों को छोड़ते हैं, तथा जहां श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विराजमान थे वहां पर पांच प्रकार के अभिगमों के द्वारा उन के सन्मुख उपस्थित होते हैं। तदनन्तर भगवान् को तीन बार प्रदक्षिणापूर्वक वन्दना तथा नमस्कार करते हैं, तदनन्तर कायिक, वाचिक और मानसिक उपासना के द्वारा भगवान् महावीर स्वामी की पर्युपासना-भक्ति करते हैं। यह है चम्पानरेश कूणिक का दर्शनयात्रावृत्तान्त जो कि श्री 1. आधिपत्य आदि शब्दों का अर्थ प्रथम श्रुतस्कंध के तृतीयाध्याय में लिखा जा चुका है। 2. पांच अभिगमों का तथा (3) तीन उपासनाओं का अर्थ प्रथम श्रुतस्कंध के प्रथमाध्याय में लिखा जा चुका है। द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [853
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy