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________________ पड़ने पर प्राणों की रक्षा का ध्यान रखते हुए मर्म स्थानों में चोट न पहुँचा कर सापेक्ष ताडन सापेक्षवध और निर्दयता के साथ ताडन करना निरपेक्षवध कहलाता है। श्रावक को निरपेक्षवध नहीं करना चाहिए। ३-छविच्छेद-शस्त्र आदि से प्राणी के अवयवों-अंगों का काटना छविच्छेद कहा जाता है। छविच्छेद के द्विपदछविच्छेद-मनुष्यादि के अवयवों को काटना, तथा चतुष्पदछविच्छेदपशुओं के अवयवों को काटना, अथवा-अर्थछविच्छेद-प्रयोजन से अवयवों को काटना तथा अनर्थछविच्छेद-बिना प्रयोजन ही अवयवों को काटना, ऐसे दो भेद होते हैं। अनर्थछविच्छेद श्रावक के लिए त्याज्य है। अर्थछविच्छेद-सापेक्षछविच्छेद और निरपेक्षछविच्छेद इन भेदों से दो प्रकार का होता है। कान, नाक, हाथ, पैर आदि अंगों को निर्दयतापूर्वक काटना निरपेक्षछविच्छेद कहलाता है जोकि श्रावक के लिए निषिद्ध है तथा किसी प्राणी की रक्षा के लिए घाव या फोड़े आदि का जो चीरना तथा काटना है वह सापेक्षछविच्छेद कहा जाता है, इस का श्रावक के लिए निषेध नहीं है। ४-अतिभार-शक्ति से अधिक भार लादने का नाम अतिभार है। मनुष्य, स्त्री, बैल, घोड़े आदि पर अधिक भार लादना अथवा असमय में लड़कों, लड़कियों का विवाह करना, अथवा प्रजा के हित का ध्यान न रख कर कानून का बनाना अतिभार कहा जाता है। अथवाबन्ध आदि की भान्ति अतिभार के द्विपदअतिभार-मनुष्यादि पर प्रमाण से अधिक भार लादना, तथा चतुष्पदअतिभार-पशुओं पर प्रमाण से अधिक भार लादना, अथवा-अर्थअतिभारप्रयोजन से अतिभार लादना तथा अनर्थअतिभार-बिना प्रयोजन ही अतिभार लादना, ऐसे दो भेद होते हैं / अनर्थअतिभार श्रावक के लिए त्याज्य होता है। अर्थअतिभार सापेक्षअतिभार तथा निरपेक्षअतिभार-इन भेदों से दो प्रकार का होता है। गाड़े आदि में जुते हुए बैलों आदि की तथा किसी भी भारवाहक मनुष्य आदि की शक्ति की परवाह न कर के निर्दयतापूर्वक परिमाण से अधिक बोझ लाद देना, अथवा उन की शक्ति से अधिक काम उन से लेना निरपेक्षअतिभार और सद्भावनापूर्वक अतिभार लादना सापेक्षअतिभार कहा जाता है। निरपेक्षअतिभार का श्रावक के लिए निषेध किया गया है। ५-भक्तपानव्यवच्छेद-अन्न-पानी का न देना, अथवा उस में बाधा डालना भक्तपानव्यवच्छेद कहलाता है। भक्तपानव्यवच्छेद द्विपदभक्तपानव्यवच्छेद-मनुष्य आदि 1. प्रस्तुत में सद्भावना पूर्वक अतिभार लादने का अभिप्राय इतना ही है कि उद्दण्ड पशु आदि को शिक्षित करने, अथवा उसे अंकुश में लाने के लिए, अथवा-किसी विशेष परिस्थिति के कारण, अथवा उपायान्तर के न होने से उन्मत्त व्यक्ति पर कदाचित् अतिभार रखना ही पड़ जाए तो उस में निर्दयता के भाव न होने से वह सापेक्षबन्ध आदि की भान्ति गृहस्थ के धर्म का बाधक नहीं होता। द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [821
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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