________________ उद्यानमभूत्, सर्वर्तुः / तत्र कृतवनमालप्रियस्य यक्षस्य यक्षायतनमभूत्, दिव्यम् / तत्र . हस्तिशीर्षे नगरे अदीनशत्रुर्नाम राजाऽभूत्, महता / तस्यादीनशत्रोः राज्ञः धारिणीप्रमुखं देवीसहस्रम्, अवरोधे चाप्यभवत् / ततः सा धारिणी देवी अन्यदा कदाचित् तस्मिन् तादृशे वासभवने सिंहं स्वप्ने यथा मेघजन्म तथा भणितव्यम्। सुबाहुकुमारो यावत् अलंभोगसमर्थं चापि जानीतः ज्ञात्वा अम्बापितरौ पञ्च प्रासादावतंसकशतानि कारयतः, अभ्युद्गत०, भवनम् / एवं यथा महाबलस्य राज्ञः नवरं पुष्पचूलाप्रमुखाणां पंचानां राजवरकन्याशतानामेकदिवसे पाणिं ग्राहयतः। तथैव पंचशतको दायो यावद् उपरि प्रासादवरगतः स्फुट यावद् विहरति। पदार्थ-एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। जम्बू !-हे जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं-उस काल और उस समय। रिद्ध-ऋद्ध-भवनादि के आधिक्य से युक्त, स्तिमित-स्वचक्र और परचक्र के ' भय से रहित तथा समृद्ध-धन, धान्यादि से परिपूर्ण / हत्थिसीसे-हस्तिशीर्ष / णाम-नाम का। णगरे-नगर। होत्था-था। तस्सणं-उस / हत्थिसीसस्स-हस्तिशीर्ष। णगरस्स-नगर के।बहिया-बाहर। उत्तरपुरस्थिमेउत्तरपूर्व / दिसीभागे-दिशा के मध्य भाग में अर्थात् ईशान कोण में। पुप्फकरंडए-पुष्पकरण्डक। णामनाम का। उज्जाणे-उद्यान / होत्था-था, जो कि। सव्वोउय-सर्व ऋतुओं में होने वाले फल, पुष्पादि से युक्त था। तत्थ णं-वहां। कयवणमालपियस्स-कृतवनमालप्रिय। जक्खस्स-यक्ष का। जक्खायतणेयक्षायतन-स्थान / होत्था-था, जो कि। दिव्वे-दिव्य अर्थात् प्रधान एवं परम सुन्दर था। तत्थ णं-उस। हत्थिसीसे-हस्तिशीर्ष / णगरे-नगर में। अदीणसत्त-अदीनशत्र। णाम-नाम का। राया-राना। होत्था-था. जो कि। महया०-हिमालय आदि पर्वतों के समान महान् था। तस्स णं-उस। अदीणसत्तुस्स-अदीनशत्रु / रण्णो-राजा की। धारिणीपामोक्खं-धारिणीप्रमुख अर्थात् धारिणी है प्रधान जिन में ऐसी। देवीसहस्संहजार देवियां-रानियां। ओरोहे यावि होत्था-अन्त:पुर में थीं। तए णं-तदनन्तर। सा-वह। धारिणीधारिणी। देवी-देवी। अन्नया-अन्यदा। कयाइ-कदाचित्। तंसि-उस। तारिसगंसि-तादृश-राजोचित। वासभवणंसि-वासभवन में-वासगृह में। सुमिणे-स्वप्न में। सीहं-सिंह को (देखती है)। जहा-जैसे ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्र में वर्णित / मेहजम्मणं-मेघकुमार का जन्म कहा गया है। तहा-तथा-उसी प्रकार। भाणियव्वं-वर्णन करना अर्थात् उस के पुत्र का जन्म मेघकुमार के समान ही जानना चाहिए। सुबाहुकुमारेसुबाहुकुमार को। जाव-यावत्। अलंभोगसमत्थं-यावि-भोगों के उपभोग करने में सर्वथा समर्थ हुआ। जाणेति जाणित्ता-जानते हैं, भोगों के उपभोग में समर्थ जान कर। अम्मापियरो-माता और पिता। पंचपासायवडिंसगसयाई-जिस प्रकार भूषणों में मुकुट सर्वोत्तम होता है, उसी प्रकार महलों में उत्तम पाँच सौ प्रासादों का निर्माण / करेंति-करवाते हैं। अब्भुग्गय०-जो कि अत्यन्त उन्नत थे और उन के मध्य में। भवणं०-एक भवन तैयार कराते हैं। एवं-इस प्रकार। जहा-यथा अर्थात् जैसे भगवती सूत्र में वर्णित / महब्बलस्स रण्णो- महाबल राजा का कथन किया गया है तद्वत् जानना चाहिए। णवरं-केवल . इतना विशेष है कि। पुष्फचूलापामोक्खाणं-पुष्पचूला है प्रमुख-प्रधान जिन में ऐसी। पंचण्हं७९४ ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्थ