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________________ प्रस्तुत में जो जात, संजात, उत्पन्न तथा समुत्पन्न ये चार पद दिये हैं, इन में प्रथम जात शब्द साधारण तथा संजात शब्द विशेष, इसी भान्ति उत्पन्न शब्द सामान्य और समुत्पन्न शब्द विशेष का बोध कराता है। जात और उत्पन्न शब्दों में इतना ही भेद है कि उत्पन्न शब्द उत्पत्ति का और जात शब्द उस की प्रवृत्ति का सूचक है। तात्पर्य यह है कि पहले श्रद्धा, संशय, कौतूहल इन की उत्पत्ति हुई और पश्चात् इन में प्रवृत्ति हुई। जातश्रद्ध, जातसंशय, जातकौतूहल, संजातश्रद्ध, संजातसंशय, संजातकौतूहल, उत्पन्नश्रद्ध, उत्पन्नसंशय, उत्पन्नकौतूहल, समुत्पन्न श्रद्ध, समुत्पन्नसंशय तथा समुत्पन्नकौतूहल श्री जम्बू स्वामी अपने स्थान से उठ कर खड़े होते हैं, खड़े होकर जहां सुधर्मा स्वामी विराजमान थे, वहां पर आते हैं, आकर श्री सुधर्मा स्वामी की दक्षिण ओर से तीन बार प्रदक्षिणा (परिक्रमा) की, प्रदक्षिणा कर के स्तुति और नमस्कार किया, स्तुति तथा नमस्कार कर के आर्य सुधर्मा स्वामी के थोड़ी सी दूरी पर सेवा और नमस्कार करते हुए सामने बैठे और हाथों को जोड़ कर विनयपूर्वक उन की भक्ति करने लगे। आर्य सुधर्मा स्वामी ने श्री जम्बू स्वामी की जिज्ञासापूर्ति के लिए जो कुछ फ़रमाया, उस का आदिम सूत्र इस प्रकार से है मूल-एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे णामंणगरे होत्था, रिद्धः / तस्स णं हत्थिसीसस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभागे पुप्फकरंडए णामं उज्जाणे होत्था, सव्वोउयः। तत्थ णं कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था, दिव्वे / तत्थ ण हत्थिसीसे णगरे अदीणसत्तू नामं राया होत्था, महयाः। तस्स णं अदीणसत्तुस्स रण्णो धारिणीपामोक्खं देवीसहस्सं ओरोहे यावि होत्था। तए णं सा धारिणीदेवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासभवणंसि सीहं सुमिणे जहा मेहजम्मणं तहा भाणियव्वं। सुबाहुकुमारे जाव अलंभोगसमत्थं यावि जाणेति जाणित्ता अम्मापियरो पंच पासायवडिंसगसयाइं कारेंति, अब्भुग्गय भवणं, एवं जहा महब्बलस्स रण्णो, णवरं पुष्फचूलापामोक्खाणं पंचण्हं रायवरकण्णगसयाणं एगदिवसेणं पाणिं गेण्हावेंति, तहेवपंचसइओ दाओ जाव उप्पिं पासायवरगए फुट्ट जाव विहरइ। - छाया-एवं खलु जम्बूः ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये हस्तिशीर्षं नाम नगरमभूत्, ऋद्धः / तस्माद् हस्तिशीर्षाद् नगराद् बहिरुत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे पुष्पकरंडक नाम द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [793
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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