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________________ क्या अर्थ। पण्णत्ते?-प्रतिपादन किया है ? तएणं-तदनन्तर / से-वह। सुहम्मे-सुधर्मा स्वामी। अणगारेअनगार / जंबु-जम्बू / अणगारं-अनगार के प्रति / एवं वयासी-इस प्रकार बोले। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। जंबु-जम्बू / समणेणं-श्रमण। जाव-यावत् / संपत्तेणं-संप्राप्त महावीर द्वारा। सुहविवागाणंसुखविपाक के। दस-दश। अज्झयणा-अध्ययन। पण्णत्ता-प्रतिपादन किये गये है। तंजहा-जैसे कि। १-सुबाहू-१-सुबाहु।२-भद्दनन्दी य-और २-भद्रनन्दी।३-सुजाए-३-सुजात।४-सुवासवे-४-सुवासव। तहेव-तथैव-उसी प्रकार। 5- जिणदासे-५-जिनदास। ६-धणवइ-६-और धनपति। ७-महब्बलोमहाबल। ८-भद्दनन्दी य-८-और भद्र नन्दी। ९-महचंदे-महाचन्द्र। १०-वरदत्ते-१०-वरदत्त / जइणंयदि। भंते-भदन्त ! समणेणं-श्रमण / जाव-यावत् ।संपत्तेणं-मोक्ष संप्राप्त ने ।सुहविवागाणं-सुखविपाक के। दस-दश। अज्झयणा- अध्ययन। पण्णत्ता-कथन किये हैं तो। पढमस्स-प्रथम। अज्झयणस्सअध्ययन का। भंते-हे भगवन् / सुहविवागाणं-सुखविपाक के। जाव-यावत्। संपत्तेणं-मोक्ष संप्राप्त महावीर स्वामी ने। के अट्ठ-क्या अर्थ। पण्णत्ते-प्रतिपादन किया है ? तएणं-तदनन्तर। से -वह। सुहम्मे-सुधर्मा स्वामी। अणगारे-अनगार। जंबु-जम्बू / अणगारं-अनगार के प्रति / एवं वयासी-इस प्रकार बोले। मूलार्थ-उस काल और उस समय राजगृह नगर के अन्तर्गत गुणशील नामक चैत्य में अनगार श्री सुधर्मा स्वामी पधारे। तब उन की पर्युपासना में रहे हुए जम्बू स्वामी ने उन के प्रति इस प्रकार कहा कि हे भगवन् ! यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने यदि दुःखविपाक का यह (पूर्वोक्त) अर्थ प्रतिपादन किया है तो यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? इस के उत्तर में श्री सुधर्मा अनगार श्री जंबू अनगार के प्रति इस प्रकार बोलेजम्बू! यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के दस अध्ययन प्रतिपादन किये हैं, जैसे कि १-सुबाहु, २-भद्रनन्दी, ३-सुजात, ४-सुवासव, ५-जिनदास, ६-धनपति, ७-महाबल, ८-भद्रनन्दी, ९-महाचन्द्र, १०-वरदत्त। भगवन् ! यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने यदि सुखविपाक के सुबाहु कुमार आदि दश अध्ययन प्रतिपादन किए हैं तो भदन्त ! यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कथन किया है ? तदनन्तर इस प्रश्न के उत्तर में श्री सुधर्मा स्वामी श्री जम्बू अनगार के प्रति इस प्रकार कहने लगे। ___टीका-संशय का विपक्षी निश्चय है, इसी भान्ति दुःख का विपक्षी सुख है। सुख की प्राप्ति सुख-जनक कृत्यों को अपनाने से होती है। जब तक सुख के साधनों को अपनाया नहीं जाता तब तक सुख की उपलब्धि केवल स्वप्नमात्र होती है। सुखप्राप्ति के लिए दुःख.के साधनों 786 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रृंतस्कन्ध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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