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________________ ७-अपुनरावृत्ति-पुनरागमन से रहित का नाम है, अर्थात् जो जन्म तथा मरण से रहित हो कर एक बार सिद्धगति में पहुँच जाता है, वह फिर लौट कर कभी संसार में नहीं आता। विपाकश्रुत के दो विभाग हैं, पहला दुःखविपाक और दूसरा सुखविपाक / जिस में हिंसा, असत्य, चौर्य, मैथुन आदि द्वारा उपार्जित अशुभ कर्मों के दुःखरूप विपाक-फल वर्णित हों, उसे दुःखविपाक कहते हैं, और जिसमें अहिंसा, सत्य आदि से जनित शुभ कर्मों का विपाक वर्णन किया गया हो, उसे सुखविपाक कहते हैं। दुःखविपाक में-१-मृगापुत्र, २उज्झितक, ३-अभग्नसेन, ४-शकट, ५-बृहस्पति, ६-नन्दिवर्धन, ७-उम्बरदत्त, ८-शौरिकदत्त, ९-देवदत्ता और १०-अंजू-ये दश अध्ययन हैं। मृगापुत्र, उज्झितक आदि का वर्णन पीछे कर दिया गया है। अंजूश्री नामक दसवें अध्ययन की समाप्ति के साथ विपाकश्रुत का दशाध्ययनात्मक प्रथम श्रुतस्कन्ध समाप्त होता है। ____ मृगापुत्र से लेकर अंजूश्री पर्यन्त के दश अध्ययनों में वर्णित कथासंदर्भ से ग्रहणीय सार को यदि अत्यन्त संक्षिप्त शब्दों में कहा जाए तो वह इतना ही है कि मानव जीवन को पतन की ओर ले जाने वाले हिंसा और व्यभिचारमूलक असत्कर्मों के अनुष्ठान से सर्वथा पराङ्मुख हो कर आत्मा की आध्यात्मिक प्रगति में सहायकभूत धर्मानुष्ठान में प्रवृत्त होने का यत्न करना और तदनुकूल चारित्र संगठित करना। बस इसी में मानव का आत्मश्रेय निहित है। इस के अतिरिवत अन्य जितनी भी सांसारिक प्रवृत्तियां हैं, उन से आत्मकल्याण की सदिच्छा में कोई प्रगति नहीं होती। इस भावना से प्रेरित हुए साधक व्यक्ति यदि उक्त दशों अध्ययनों का मननपूर्वक अध्ययन करने का यत्न करेंगे तो आशा है उन को उस से इच्छित लाभ की अवश्य प्राप्ति होगी। बस इतने निवेदन के साथ हम श्री विपाकश्रुतस्कन्ध के प्रथम श्रुतस्कन्ध सम्बन्धी विवेचन को समाप्त करते हुए पाठकों से प्रस्तुत प्रथम श्रुतस्कन्ध के अध्ययनों से प्राप्त शिक्षाओं को जीवन में उतार कर साधनापथ में अधिकाधिक अग्रेसर होने का प्रयत्न करेंगे, ऐसी आशा करते हैं। ॥दशम अध्ययन समाप्त॥ ॥विपाकश्रुत का प्रथम श्रुतस्कन्ध समाप्त॥ प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / दशम अध्याय [779
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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