________________ का परिचायक है। इन पदों का अर्थ प्रथमाध्याय में लिखा जा चुका है। -जाव उग्घोसंति-यहां का जाव-यावत् पद -अंजूए देवीए जोणिसूलं उवसामित्तते, तस्स णं विजए राया विउलं अत्थसंपयाणं दलयति, दोच्चं पितच्चं पि उग्घोसेह उग्घोसित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणेह।तते णं ते कोडुंबिया पुरिसा, एयमटुं करयलपरिग्गहियं मत्थए दसणहं अंजलिं कट्ट पडिसुणेति पडिसुणित्ता वद्धमाणपुरे सिंघाडग० जाव पहेसु महया 2 सद्देणं एवं खलु देवाणुप्पिया ! अंजूए देवीए जोणिसूले पाउब्भूते, तं जो णं इच्छति वेजो वा 6 अंजूए देवीए जोणिसूलं उवसामित्तते, तस्स णं विजए राया विउलं अत्थसंपयाणं दलयति त्ति-इन पदों का परिचायक है। इन पदों का अर्थ स्पष्ट ही है। -उप्पत्तियाहिं 4 बुद्धिहिं-यहां के अंक से अभिमत अवशिष्ट वैनयिकी आदि तीन बुद्धियों की सूचना अष्टमाध्याय में की जा चुकी है। तथा-श्रान्त, तान्त और परितान्त पदों का अर्थ प्रथमाध्याय में तथा-शुष्का-इत्यादि पदों का अर्थ पीछे अष्टमाध्याय में, तथा-पुरा / जाव विहरति-यहां के जाव-यावत् पद से विवक्षित पदों का विवरण तृतीयाध्याय में किया जा चुका है। ___ अञ्जूश्री के जीवनवृत्तान्त का श्रवण कर और उसके शरीरगत रोग को असाध्य जान कर मृत्यु के अनन्तर उस का क्या बनेगा, इस जिज्ञासा को लेकर गौतम स्वामी प्रभु से फिर पूछते हैं मूल-अंजूणं भंते ! देवी इओ कालमासे कालं किच्चा कहिंगच्छिहिति?, कहिं उववजिहिति ? छाया-अजूः भदन्त ! देवी इतः कालमासे कालं कृत्वा कुत्र गमिष्यति ?, कुत्र उपपत्स्य ते ? पदार्थ-भंते !-हे भगवन् ! अंजू णं देवी-अजूदेवी। इओ-यहां से। कालमासे-कालमास में। कालं किच्चा-काल करके। कहिं-कहां। गच्छिहिति?-जाएगी? कहिं-कहां पर। उववजिहितिउत्पन्न होगी? मूलार्थ-भगवन् ! अंजूदेवी यहां से कालमास में अर्थात् मृत्यु का समय आ जाने पर काल करके कहां जाएगी? और कहां पर उत्पन्न होगी? टीका-वर्धमान नरेश विजयमित्र के अशोकवाटिका के निकट जाते हुए गौतम स्वामी ने जो एक स्त्री का दयनीय दृश्य देखा था, तथा उस से उन के मन में उस के पूर्वजन्मसम्बन्धी 1. अन्तर मात्र इतना है कि वहां ये पद द्वितीयान्त तथा पुरुषवर्णन में उपन्यस्त हैं। 766 ] श्री विपाक सूत्रम् / दशम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कन्ध