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________________ प्रतिष्ठा प्राप्त किए हुए था, उस की। पियंगू भारिया-प्रियंगू नाम की भार्या थी। अंजू-अंजू नामक। दारिया-दारिका-बालिका। जाव-यावत्। सरीरा-उत्कृष्ट-उत्तम शरीर वाली थी। समोसरणं-भगवान् महावीर स्वामी पधारे। परिसा-परिषद् / जाव-यावत्। गओ-चली गई। तेणं कालेणं-उस काल और उस समय। जेट्टे-ज्येष्ठ शिष्य। जाव-यावत्। अडमाणे-भ्रमण करते हुए। विजयमित्तस्स-विजयमित्र / रण्णो-राजा के। गिहस्स-घर की। असोगवणियाए-अशोकवनिका-अशोक वृक्ष प्रधान बगीची के। अदूरसामंतेणं-समीप से। वीइवयमाणे-गमन करते हुए। पासति-देखते हैं। एग-एक। इत्थियं-स्त्री को, जो कि। सुक्खं-सूखी हुई। भुक्खं-बुभुक्षित। निम्मंसं-मांस से रहित-जिस के शरीर का मांस समाप्तप्रायः हो रहा है। किडिकिडियाभूयं-किटिकिटि शब्द से युक्त-अर्थात् जिस की शरीरगत अस्थियां किटि-किटि शब्द कर रही हैं। अट्ठिचम्मावणद्धं-जिस का चर्म अस्थियों से चिपटा हुआ है अर्थात् अस्थिचर्मावशेष। णीलसाडगणियत्थं-और जो नीली साड़ी पहने हुए है, ऐसी उस। कट्ठाइंकष्टात्मक-कष्टप्रद / कलुणाई-करुणोत्पादक। वीसराइं-दीनतापूर्ण वचन / कूवमाणिं-बोलती हुई को। . पासित्ता-देखकर। चिन्ता- विचार उत्पन्न हुआ। तहेव-तथैव-उसी प्रकार। जाव-यावत् वापिस आ कर। एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगे। भंते! हे भदंत ! सा णं-वह। इत्थिया-स्त्री। पुव्वभवे-पूर्व भव में। का आसि ?-कौन थी ? इस के उत्तर में भगवान् महावीर स्वामी का। वागरणं-प्रतिपादन करना। मूलार्थ-दशम अध्ययन के उत्क्षेप-प्रस्तावना की कल्पना पूर्व की भान्ति जान लेनी चाहिए।हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में वर्द्धमानपुर नाम का एक नगर था। वहाँ विजयवर्द्धमान नामक उद्यान था। उस में माणिभद्र नामक यक्ष का स्थान था। विजयमित्र वहाँ के राजा थे। वहाँ धनदेव नाम का सार्थवाह रहता था जोकि बहुत धनी और नगरप्रतिष्ठित था, उस की प्रियंगू नाम की भार्या थी, तथा उस की सर्वोत्कृष्ट शरीर से युक्त अञ्जू नाम की एक बालिका थी। उस समय विजयवर्द्धमान उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे, यावत् परिषद् धर्मदेशना सुन कर वापिस चली गई। उस समय भगवान् के ज्येष्ठ शिष्य यावत् भिक्षार्थ भ्रमण करते हुए विजयमित्र राजा के घर की अशोकवनिका के समीप जाते हुए एक सूखी हुई, बुभुक्षित, निर्मांस, किटिकिटि शब्द करती हुई अस्थिचर्मावनद्ध, नीली साड़ी पहने हुए, कष्टमय, करुणाजनक तथा दीनतापूर्ण वचन बोलती हुई एक स्त्री को देखते हैं, देखकर विचार करते हैं। शेष पूर्ववत् यावत् भगवान् से आकर इस प्रकार बोले-भगवन् ! यह स्त्री पूर्वभव में कौन थी ? इस के उत्तर में भगवान् प्रतिपादन करने लगे। 752 ] श्री विपाक सूत्रम् / दशम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कन्ध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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