SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 760
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अञ्जूश्री नामक एक नारी भी है, जिस ने पृथिवीश्री गणिका के भव में अपने देवदुर्लभ मानव जीवन को विषय-वासना के पोषण में ही अधिकाधिक लगाया और अनेकानेक चूर्णादि के प्रयोगों द्वारा राजा, ईश्वर आदि लोगों को वश में ला कर उन्हें दुराचार के पथ का पथिक बनाया, * एवं अपनी वासनामूलक कुत्सित भावनाओं से जन्म-मरण रूपी वृक्ष को अधिकाधिक पुष्पित एवं पल्लवित किया। प्रस्तुत दशम अध्ययन में उसी अंजू देवी का जीवन वर्णित हुआ है, जिस का आदिम सूत्र निम्नोक्त है मूल-दसमस्स उक्खेवो, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं 2 वद्धमाणपुरे णामं णगरे होत्था। विजयवड्ढमाणे उज्जाणे। माणिभद्दे जक्खे विजयमित्ते राया। तत्थ णं धणदेवो णामं सत्थवाहे होत्था अड्ढे / पियंगू भारिया। अंजू दारिया जाव सरीरा। समोसरणं। परिसा जाव गओ। तेणं कालेणं 2 जेढे जाव अडमाणे विजयमित्तस्स रण्णो गिहस्स असोगवणियाए अदूरसामंतेणं वीइवयमाणे पासति एगं इत्थियं सुक्खं भुक्खं निम्मंसं किडिकिडियाभूयं अट्ठिचम्मावणद्धं णीलसाडगनियत्थं कट्ठाइं कलुणाई वीसराई कूवमाणिं पासित्ता चिन्ता। तहेव जाव एवं वयासी सा णं भंते ! इत्थिया पुव्वभवे का आसि ? वागरणं। .. - छाया-दशमस्योत्क्षेपः। एवं खलु जम्बू ! तस्मिन् काले 2 वर्धमानपुरं नाम, नगरमभूत्। विजयवर्धमानमुद्यानम् / माणिभद्रो यक्षः। विजयमित्रो राजा / तत्र धनदेवो नाम सार्थवाहोऽभूदाढ्यः। प्रियंगूः भार्या / अञ्जूः दारिका यावत् शरीरा / समवसरणम्। परिषद् यावद् गता। तस्मिन् काले 2 ज्येष्ठो यावद् अटन् विजयमित्रस्य राज्ञो गृहस्याशोकवनिकाया, अदूरासन्ने व्यतिव्रजन् पश्यत्येकां स्त्रियं शुष्कां बुभुक्षितां निर्मासां किटिकिटिभूतां चर्मावनद्धां नीलशाटकनिवसितां कष्टानि करुणानि विस्वराणि कूजन्ती दृष्ट्वा चिन्ता। तथैव यावदेवमवादीत्-सा भदन्त ! स्त्री पूर्वभवे कासीद् ? व्याकरणम्। पदार्थ-दसमस्स-दशम अध्ययन के। उक्खेवो-उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्व की भान्ति जान लेनी चाहिए। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। जंबू !-हे जम्बू ! तेणं कालेणं २-उस काल और उस समय में। वद्धमाणपुरे-वर्धमानपुर / णाम-नामक / णगरे-नगर / होत्था-था। विजयवड्ढमाणे-विजयवर्धमान नामक / उज्जाणे-उद्यान था, वहां। माणिभद्दे-माणिभद्र। जक्खे-यक्ष का स्थान था। विजयमित्ते-विजयमित्र। राया-राजा था। तत्थ णं-वहां पर। धणदेवो-धनदेव। णाम-नाम का। सत्थवाहे-यात्री व्यापारियों का मुखिया अथवा संघनायक। होत्था-रहता था, जोकि। अड्ढे-बड़ा धनी तथा अपनी जाति में महान् प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / दशम अध्याय [751
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy