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________________ किंशुक-केसू के कुसुम के समान लाल हुए लोहदण्ड को। संडासएणं-संडसा-एक प्रकार का लोहे का चिमटा था औज़ार जिस से गरम चीजें पकड़ी जाती हैं, पंजाब में इसे संडासी कहते हैं। गहाय-पकड़ कर। जेणेव-जहां पर। सिरीदेवी-श्रीदेवी (सोई हुई थी)। तेणेव-वहां पर। उवागच्छइ २-आ जाती है, आकर, सिरीए-श्री। देवीए-देवी के। अवाणंसि-'अपान-गुह्यस्थान में। पक्खिवेति-प्रविष्ट कर देती है। तते णं-तदनन्तर / सा-वह। सिरीदेवी-श्रीदेवी। महता २-अति महान्। सद्देणं-शब्द से। आरसित्ताआक्रन्दन कर, चिल्ला-चिल्ला कर / कालधम्मुणा-कालधर्म से। संजुत्ता-संयुक्त हुई-काल कर गई। तते णं-तदनन्तर। तीसे-उस। सिरीए देवीए-श्रीदेवी की। दासचेडीओ-दास, दासियां। आरसियसइंआरसितशब्द-आक्रन्दनमय शब्द को अर्थात् राड़ को। सोच्चा-सुन कर। निसम्म-अवधारण कर। जेणेव-जहां पर। सिरीदेवी-श्रीदेवी थी। तेणेव-वहां पर। उवागच्छन्ति २-आ जाती हैं, आकर। ततोवहां से। देवदत्तं-देवदत्ता। देविं-देवी को। अवक्कममाणिं-निकलती-वापिस आती हुई को। पासंतिदेखती हैं, और। जेणेव-जिधर। सिरीदेवी-श्रीदेवी थी। तेणेव-वहां पर। उवागच्छन्ति २-आती हैं, आकर / सिरिदेविं-श्रीदेवी को। निप्पाणं-निष्प्राण-प्राणरहित।निच्चेटुं-निश्चेष्ट-चेष्टारहित।जीवविप्पजढंजीवनरहित। पासंति २-देखती हैं, देख कर। हा हा अहो-हा ! हा ! अहो ! अकजमिति-बड़ा अनर्थ हुआ, इस प्रकार / कट्ट-कह कर। रोयमाणीओ २-रुदन, आक्रन्दन तथा विलाप करती हुई। जेणेव-जहां पर।पूसणंदी-पुष्यनन्दी। राया-राजा था। तेणेव-वहां पर। उवागच्छंति २-आती हैं, आकर।पूसणंदिरायंमहाराज पुष्यनन्दी के प्रति। एवं-इस प्रकार / वयासी-कहने लगीं। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। सामी !-हे स्वामिन् ! सिरीदेवी-श्रीदेवी को। देवदत्ताए-देवदत्ता। देवीए-देवी ने। अकाले चेवअकाल में ही। जीवियाओ-जीवन से। ववरोविया-पृथक् कर दिया, मार दिया। - मूलार्थ-तदनन्तर किसी समय मध्यरात्रि में कुटुम्बसम्बन्धी चिन्ताओं से व्यस्त हुई देवदत्ता के हृदय में यह संकल्प उत्पन्न हुआ कि महाराज पुष्यनन्दी निरन्तर श्रीदेवी की सेवा में लगे रहते हैं, तब इस अवक्षेप-विन से मैं महाराज पुष्यनन्दी के साथ उदार मनुष्यसम्बन्धी विषयभोगों का उपभोग नहीं कर सकती, अर्थात् उन के श्रीदेवी की भक्ति में निरंतर लगे रहने से मुझे उन के साथ पर्याप्तरूप में भोगों के उपभोग का यथेष्ट अवसर प्राप्त नहीं होता। इसलिए मुझे अब यही करना योग्य है कि अग्नि के प्रयोग, शस्त्र अथवा विष के प्रयोग से श्रीदेवी का प्राणांत करके महाराज पुष्यनन्दी के साथ उदार-प्रधान मनुष्यसम्बन्धी विषयभोगों का यथेष्ट उपभोग करूं, ऐसा विचार कर वह श्रीदेवी को मारने के लिए किसी अन्तर, छिद्र और विरह की अर्थात् उचित अवसर की प्रतीक्षा में सावधान रहने लगी। तदनन्तर किसी समय श्रीदेवी स्नान किए हुए एकान्त शयनीय स्थान में सुखपूर्वक सोई हुई थी। इतने में देवी देवदत्ता ने स्नपित-जिसे स्नान कराया गया हो, एकान्त 1. अपान शब्द का अर्थ कोषों में गुदा लिखा है, परन्तु कहीं-कहीं योनि अर्थ भी पाया जाता है। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [735
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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