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________________ वैश्रमण। राया-राजा। उवणीतं-लाई हुई। देवदत्तं-देवदत्ता। दारियं-दारिका-बालिका को। पासित्ता.देख कर। हट्ठतुट्ठ-प्रसन्न होता हुआ। विउलं-विपुल। असणं ४-अशनादि को। उवक्खडावेति 2 तैयार कराता है, तैयार करा कर। मित्तनाति-मित्र तथा ज्ञातिजन आदि को। आमंतेति-आमंत्रित करता है। जाव-यावत्। सक्कारेति २-सत्कार करता है, करके। सम्माणेइ २-सम्मान करता है, करके। पूसणंदिकुमार-कुमार पुष्यनन्दी। देवदत्तं दारियं च-और देवदत्ता बालिका को। पट्टयं-पट्टक अर्थात् फलक पर। दुरूहेति २-बिठलाता है, बिठला कर। सेयपीतेहि-श्वेत और पीत-सफ़ेद और पीले। कलसेहि-कलशों से। मज्जावेति २-स्नान कराता है, स्नान कराने के अनन्तर / वरनेवत्थाई करेति २उन को सुन्दर वस्त्रों और आभूषणों से अलंकृत किया, करके। अग्गिहोम-अग्निहोम-हवन / करेतिकरता है, तदनन्तर।पूसणंदिकुमार-कुमार पुष्यनन्दी को। देवदत्ताए-देवदत्ता का। पाणिं-हाथ।गिण्हावेतिग्रहण कराता है। तते णं-तदनन्तर / से-वह / वेसमणेदत्ते-वैश्रमणदत्त / राया-राजा।पूसणंदिस्स-पुष्यनन्दी। कुमारस्स-कुमार को, तथा। देवदत्ताए-देवदत्ता को। सव्विड्ढीए-सर्व ऋद्धि। जाव-यावत्। रवेणंवादित्रादि के शब्द से। महया-महान्। इड्ढिसक्कारसमुदएणं-ऋद्धि-वस्त्रालंकारादि सम्पत्ति और। सत्कार-सम्मान के समुदाय-महानता से। पाणिग्गहणं-पाणिग्रहण-विवाहसंस्कार / कारवेति-कराता है, विवाह करा कर अर्थात् उक्त विधि से विवाहसंस्कार सम्पन्न हो जाने के बाद। देवदत्ताए-देवदत्ता के। अम्मापियरो-माता पिता और उन के। मित्त-मित्र / जाव-यावत् / परियणं च-परिजन को। विउलेणंविपुल-पर्याप्त। असण० ४-अशनादिक, तथा। वत्थगंधमल्लालंकारेण य-वस्त्र, गंध, माला और अलंकारादि से। सक्कारेति २-सत्कार करता है, सत्कार करके। सम्माणेइ २-सम्मान करता है, करके, उन सबको। पडिविसजेति-विसर्जित करता है-विदा करता है। . मूलार्थ-किसी अन्य समय दत्त गाथापति-गृहस्थ शुभ तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र और मुहूर्त में विपुल अशनादिक सामग्री तैयार कर मित्र, ज्ञाति, स्वजन और सम्बन्धी आदि को आमंत्रित कर स्नान यावत् दुष्ट स्वप्नादि के फल को विनष्ट करने के लिए मस्तक पर तिलक और अन्य मांगलिक कार्य करके सुखप्रद आसन पर स्थित हो उस विपुल अशनादिक का मित्र, ज्ञाति,स्वजन, सम्बन्धी एवं परिजनों के साथ आस्वादन, विस्वादन आदि करने के अनन्तर, उचित स्थान पर बैठ आचान्त, चोक्ष और परमशुचिभूत हो कर मित्र, ज्ञातिजन आदि का विपुल, पुष्प, वस्त्र, गंध, माला और अलंकार से सत्कार करता है, सम्मान करता है। तदनन्तर स्नान करा कर यावत् शारीरिक विभूषा से विभूषित की गई कुमारी देवदत्ता को सहस्रपुरुषवाहिनी अर्थात् जिसे हज़ार आदमी उठा रहे हैं ऐसी शिविका में बिठा कर अनेक मित्रों, ज्ञातिजनों, निजकजनों, स्वजनों, 1. कुल्ला-कुल्ली करने वाले को आचान्त कहते हैं। मुंह में लगे हुए भक्त-भोजन के अंश को जिस ने साफ़ कर लिया है, वह चोक्ष कहलाता है, तथा परम शुद्ध (जिस का मुख बिल्कुल साफ़ हो) को परमशुचिभूत कहा जाता है। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [723
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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