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________________ अभिमत पद पीछे लिखे जा चुके हैं। अन्तर मात्र इतना है कि वहां वे पद प्रथमान्त दिए गए हैं, जब कि प्रस्तुत में द्वितीयान्त अपेक्षित हैं, अतः अर्थ में द्वितीयान्त की भावना भी कर लेनी चाहिए। -भीया 4 जाव झियामि-यहां दिए गए 4 के अंक से -तत्था उव्विग्गा संजायभया-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। इन का अर्थ पीछे पदार्थ में लिखा जा चुका है। तथा-जाव-यावत्-पद पीछे पढ़े गये-ओहयमणसंकप्पा-इत्यादि पदों का परिचायक है.। तथा-ओहतमणसंकप्पा जाव झियाहि-यहां पठित जाव-यावत् पद से - भूमीगयदिट्ठिया-इत्यादि पदों का बोध होता है। .. -इट्ठाहिं जाव समासासेति-यहां पठित जाव-यावत् पद से-कंताहिं, पियाहिं, मणुण्णाहिं, मणामाहिं, मणोरमाहि, उरालाहिं, कल्लाणाहिं, सिवाहि, धन्नाहिं, मंगलाहिं, सस्सिरीयाहिं, हिययगमणिज्जाहिं, हिययपल्हायणिज्जाहिं, मिय-महुर-मंजुलाहिं वग्गूहिंइन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को इष्ट है। इष्ट आदि पदों का अर्थ निम्नोक्त है १-इष्ट-अभिलषित (जिस की सदा इच्छा की जाए) का नाम है। २-कान्तसुन्दर को कहते हैं / ३-जिसे सुन कर द्वेष उत्पन्न न हो उसे प्रिय कहा जाता है। ४-जिसके श्रवण से मन प्रसन्न होता है वह मनोज्ञ कहलाता है। ५-मन से जिस की चाहना की जाए उसे मनोरम कहते हैं।६-जिस के चिन्तन मात्र से मन में प्रमोदानुभव हो उसे मनोरम कहते हैं। ७-नाद, वर्ण, और उस के उच्चारण आदि की प्रधानता वाला उदार कहलाता है। ८समृद्धि करने वाला-इस अर्थ का परिचायक कल्याण शब्द है। ९-वाणी के दोषों से रहित को शिव कहते हैं। १०-धन की प्राप्ति करने वाले अथवा प्रशंसनीय वचन को धन्य कहा जाता है। ११-अनर्थ के प्रतिघात-विनाश में जो हितकर हो उसे मंगल कहते हैं। १२अलंकार आदि की शोभा से युक्त सश्रीक कहलाता है। १३-हृदयगमनीय शब्द-कोमल और सुबोध होने से जो हृदय में प्रवेश करने वाला हो, अथवा हृदयगत शोकादि का उच्छेद करने वाला हो-इस अर्थ का परिचायक है। १४-हृदयप्रह्लादनीय शब्द-हृदय को हर्षित करने वाला, इस अर्थ का बोध कराता है। १५-मितमधुरमंजुल-इस में मित, मधुर और मंजुल ये तीन पद हैं। मित परिमित को कहते हैं, अर्थात् वर्ण, पद और वाक्य की अपेक्षा से जो परिमित हो उसे मित कहा जाता है। मधुर-शब्द मधुर स्वर वाले वचन का बोध कराता है। शब्दों की अपेक्षा से जो सुन्दर है उसे मंजुल कहते हैं / १६-वाग्-वचन का नाम है। प्रस्तुत में इष्ट आदि विशेषण हैं और वाग् यह विशेष्य पद है। . -पासाइयं ४-यहां दिए गये 4 के अंक से -दंसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे-इन प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [701
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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