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________________ कूटाकारशाला तैयार कराते हैं और तैयार करा कर उस की महाराज सिंहसेन को सूचना दे देते हैं। टीका-महारानी श्यामा का (499) रानियों की माताओं के षड्यन्त्र से भयभीत होकर कोपभवन में प्रविष्ट होने का समाचार उस की दासियों के द्वारा जब महाराज सिंहसेन को मिला तो वे बड़ी शीघ्रता से राजमहल की ओर प्रस्थित हुए, महलों में पहुँचे और कोपभवन में आकर उन्होंने महारानी श्यामा को बड़ी ही चिन्ताजनक अवस्था में देखा। वह बड़ी सहमी हुई तथा अपने को असुरक्षित जान बड़ी व्याकुल सी हो रही है एवं उस के नेत्रों सें अश्रुओं की धारा बह रही है। महाराज सिंहसेन को अपनी प्रेयसी श्यामा की यह दशा बड़ी अखरी, उस की इस करुणाजनक दशा ने महाराज सिंहसेन के हृदय में बड़ी भारी हलचल मचा दी, वे बड़े अधीर हो उठे और श्यामा को सम्बोधित करते हुए बोले कि प्रिये ! तुम्हारी यह अवस्था क्यों ? तुम्हारे इस तरह से कोपभवन में आकर बैठने का क्या कारण है? जल्दी कहो! मुझ से तुम्हारी यह दशा देखी नहीं जाती, इत्यादि। पतिदेव के सान्त्वनागर्भित इन वचनों को सुन कर श्यामा के हृदय में कुछ ढाढ़स बंधी, परन्तु फिर भी वह क्रोधयुक्त सर्पिणी की तरह फुकारा मारती हुई अथवा दूध के उफान की तरह बड़े रोष-पूर्ण स्वर में महाराज सिंहसेन को सम्बोधित करती हुई इस प्रकार बोलीस्वामिन् ! मैं क्या करूं, मेरी शेष सपत्नियों (सौकनों) की माताओं ने एकत्रित होकर यह निर्णय किया है कि महाराज श्यामा देवी पर अधिक अनुराग रखते हैं और हमारी पुत्रियों की तरफ ध्यान तक भी नहीं देते। इस का एकमात्र कारण श्यामा है, अगर वह न रहे तो हमारी पुत्रियां सुखी हो जाएं। इस विचार से उन्होंने मेरे को मार देने का षड्यन्त्र रचा है, वे रात दिन इसी ध्यान में रहती हैं कि उन्हें कोई उचित अवसर मिले और वे अपना मन्तव्य पूरा करें। प्राणनाथ ! इस आगन्तुक भय से त्रास को प्राप्त हुई मैं यहां पर आकर बैठी हूँ, पता नहीं कि अवसर मिलने पर वे मुझे किस प्रकार से मौत के घाट उतारें। इतना कह कर उसने अपनी मृत्युभयजन्य आंतरिक वेदना को अश्रुकणों द्वारा सूचित करते हुए अपने मस्तक को महाराज के चरणों में रख कर मूकभाव से अभयदान की याचना की। ___ महारानी श्यामा के इस मार्मिक कथन से महाराज सिंहसेन बड़े प्रभावित हुए, उनके हृदय पर उस का बड़ा गहरा प्रभाव हुआ। वे कुछ विचार में पड़ गए, परन्तु कुछ समय के बाद ही प्रेम और आदर के साथ श्यामा को सम्बोधित करते हुए बोले कि प्रिये ! तुम किसी प्रकार की चिन्ता मत करो। तुम्हारी रक्षा का सारा भार मेरे ऊपर है, मेरे रहते तुम को किसी प्रकार के अनिष्ट की शंका नहीं करनी चाहिए। तुम्हारी ओर कोई आंख उठा कर नहीं देख सकता। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [699
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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