________________ आदि पांच सौ वस्तुएं दहेज के रूप में दीं। तदनन्तर युवराज सिंहसेन अपनी श्यामा देवी प्रमुख , 500 रानियों के साथ उन महलों में सांसारिक सुखों का यथेच्छ उपभोग करता हुआ आनन्दपूर्वक रहने लगा। -रायवरकन्नगसयाणं-इस पद से सूचित होता है कि वे राजकन्याएं साधारण नहीं थीं किन्तु प्रतिष्ठित राजघरानों की थीं। इस के साथ-साथ यह भी सूचित होता है कि महाराज महासेन का सम्बन्ध बड़े-बड़े प्रतिष्ठित राजाओं के साथ था। पांच सौ कन्याओं के साथ जो विवाह का वर्णन किया है, इससे दो बातें प्रमाणित होती हैं जो कि निम्नोक्त हैं (1) प्राचीन समय में प्रायः राजवंशों में बहुविवाह की प्रथा पूरे यौवन पर थी, इस को अनुचित नहीं समझा जाता था। (2) महाराज महासेन का इतना महान् प्रभाव था कि आस-पास के सभी मांडलीक राजा उन को अपनी कन्या देने में अपना गौरव समझते थे। इस व्यवहार से वे महाराज महासेन की कृपा का संपादन करना चाहते थे। ___ "-एगदिवसेणं-" यह पद महाराज महासेन की कार्यदक्षता एवं दीर्घदर्शिता का सूचक है। इतने बड़े समारम्भ को एक ही दिन में सम्पूर्ण करना कोई साधारण काम नहीं होता। तात्पर्य यह है कि वे व्यवहार में कुशल और बड़े प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। बहुकालसाध्य कार्य को भी स्वल्प काल में सम्पन्न कर लेते थे। यह सब को विदित ही है कि घड़ी में जितनी चाबी दी हुई होती है, उतनी ही देर तक घड़ी चलती है और समय की सूचना देती रहती है। चाबी के समाप्त होते ही वह खड़ी हो जाती है, उस की गति बन्द हो जाती है। यही दशा इस मानव शरीर की है। जब तक आयु है तब तक वह चलता फिरता और सर्व प्रकार के कार्य करता है। आयु के समाप्त होते ही उसकी सारी चेष्टाएं समाप्त हो जाती हैं। वह जीवित प्राणी न रह कर, एक पाषाण की भान्ति निश्चेष्टता को धारण कर लेता है। और उस शरीर को जिस का कि बराबर पालन पोषण किया जाता था, जला दिया जाता है। इस विचित्र लीला का प्रत्येक मानव अनुभव कर रहा है। इसी के अनुसार महाराज महासेन भी अपनी समस्त मानव लीलाओं का सम्वरण करके मृत्यु की गोद में जा विराजे। राजभवनों में महाराज की मृत्यु का समाचार पहुंचा तो सारे रणवास में शोक एवं दुःख . की चादर बिछ गई। युवराज सिंहसेन को महाराज की मृत्यु से बड़ा आघात पहुंचा। शहर में इस खबर के पहुंचते ही मातम छा गया। नगर की जनता युवराज सिंहसेन के सन्मुख संवेदना 680 ] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध