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________________ भारते वर्षे सुप्रतिष्ठं नाम नगरमभूद्, ऋद्ध / महासेनो राजा। तस्य महासेनस्य धारिणीप्रमुखं देवीसहस्रमवरोधे चाप्यभूत् / तस्य महासेनस्य पुत्रो धारिण्या देव्या आत्मजः सिंहसेनो नाम कुमारोऽभूदहीन युवराजः। ततस्तस्य सिंहसेनस्य कुमारस्याम्बापितरौ, अन्यदा कदाचित् 'पंचप्रासादावतंसकशतानि कारयतः, अभ्युद्गत० / ततस्तस्य सिंहसेनस्य कुमारस्य अन्यदा कदाचित् श्यामाप्रमुखाणां पंचानां राजवरकन्यकाशतानामेकदिवसेन पाणिमग्राहयताम् / पंचशतको दायः। ततः स सिंहसेनः कुमारः श्यामाप्रमुखैः पंचभिः देवीशतैः सार्द्धमुपरि यावत् विहरति / ततः स महासेनो राजा, अन्यदा कदाचिद् कालधर्मेण संयुक्तः निस्सरणं / राजा जातो महा। पदार्थ-एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। गोयमा !-हे गौतम ! तेणं कालेणं तेणं समएणंउस काल तथा उस समय। इहेव-इसी। जंबुद्दीवे-जम्बूद्वीप नामक। दीवे-द्वीप के अन्तर्गत। भारहे वासे-भारत वर्ष में। सुपतिद्वे-सुप्रतिष्ठ। णाम-नामक। णगरे-नगर। होत्था-था, जो कि। रिद्ध-ऋद्धभवनादि के आधिक्य से युक्त, स्तिमित-आन्तरिक और बाह्य उपद्रवों के भय से रहित, तथा समृद्ध-धन धान्यादि से परिपूर्ण, था। महासेणे राया-महासेन नामक राजा था। तस्स णं-उस। महासेणस्स-महासेन की। धारिणीपामुक्खं-जिस में धारिणी प्रमुख-प्रधान हो ऐसी। देवीसहस्सं-हज़ार रानियां। ओरोहेअवरोध-अन्तःपुर में। याविहोत्था-थीं। तस्सणं-उस। महासेणस्स-महासेन का।पुत्ते-पुत्र / धारिणीएधारिणी। देवीए-देवी का। अत्तए-आत्मज। सीहसेणे-सिंहसेन / णाम-नामक / कुमारे-कुमार। होत्थाथा। अहीण-जो कि अन्यून एवं निर्दोष पांच इन्द्रियों वाले शरीर से युक्त, तथा। जुवराया-युवराज था। तते णं-तदनन्तर। तस्स-उस। सीहसेणस्स-सिंहसेन / कुमारस्स-कुमार के। अम्मापितरो-माता-पिता। अन्नया कयाइ-किसी अन्य समय। अब्भुगत०-अत्यन्त विशाल। पंचपासायवडिंसगसयाई-पांच सौ प्रासादावतंसक-श्रेष्ठ महल। कारेंति-बनवाते हैं। तते णं-तदनन्तर / तस्स-उस। सीहसेणस्स-सिंहसेन। कुमारस्स-कुमार का। अन्नया कयाइ-किसी अन्य समय। सामापामोक्खाणं-जिस में श्यामा देवी प्रधान थी ऐसी। पंचण्हं रायवरकन्नगसयाणं-पांच सौ श्रेष्ठ राजकन्याओं का। एगदिवसेणं-एक दिन में। पाणिं गेण्हावेंसु-पाणिग्रहण करवाया। पंचसयओ-पांच सौ। दाओ-प्रीतिदान-दहेज दिया। तते णंतदनन्तर। से-वह। सीहसेणे-सिंहसेन। कुमारे-कुमार। सामापामोक्खेहि-श्यामादेवीप्रमुख। पंचहिं देवीसतेहि-पांच सौ देवियों के। सद्धिं-साथ। उप्पिं-प्रासाद के ऊपर। जाव-यावत्, सानन्द। विहरतिसमय बिताता है। तते णं-तदनन्तर। से-वह। महासेणे-महासेन। राया-राजा। अन्नया कयाइ-अन्यदा कदाचित् / कालधम्मुणा-कालधर्म से। संजुत्ते-संयुक्त हुआ-मृत्यु को प्राप्त हो गया। नीहरणं०-राजा का 1. अवतंसका इवावतंसकाः शेखराः, प्रासादाश्च तेऽवतंसकाः प्रासादावतंसकाः तेषां पंचशतानीत्यर्थः / अर्थात् प्रासाद महल का नाम है। अवतंसक शब्द प्रकृत में शिरोभूषण के लिए प्रयुक्त हुआ है। तात्पर्य यह है कि जैसे शिरोभूषण सब भूषणों में उन्नत एवं श्रेष्ठ माना गया है, उसी तरह वे प्रासाद भी सब प्रासादों में श्रेष्ठ थे, और उनकी संख्या 500 थी। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [677
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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