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________________ है। इस के अतिरिक्त शास्त्रों में ब्रह्मचर्य को सुदृढ़ जहाज़ के तुल्य बतलाया गया है। जिस तरह जहाज यात्री को समुद्र में से पार कर किनारे लगा देता है, उसी तरह ब्रह्मचर्य भी साधक को संसार समुद्र से पार कर उसके अभीष्ट स्थान पर पहुँचा देता है, इस लिए प्रत्येक मुमुक्षु पुरुष द्वारा ब्रह्मचर्य जैसे महान् व्रत को सम्यक्तया अपनाने का यत्न करना चाहिए, इसके विपरीत जो जीव ब्रह्मचर्य का पालन न कर केवल मैथुनसेवी बने रहते हैं, तथा उसके लिए उपयुक्त साधनों को एकत्रित करने में अनेक प्रकार के क्रूरकर्म करते हैं, वे अपनी आत्मा को मलिन करते अथच चतुर्गतिरूप संसार-सागर में गोते खाते हैं, तथा नाना प्रकार के दुःखों का अनुभव करते हैं। ___ प्रस्तुत नवम अध्ययन में ब्रह्मचर्य से पराङ्मुख रहने वाले विषयासक्त एक कामी नारीजीवन का वृत्तान्त वर्णित हुआ है, जो विषयवासनाओं का अधिकाधिक उपभोग करने के लिए अपनी सास के जीवन का भी अन्त कर देती है, इसके अतिरिक्त साथ में एक पुरुषजीवन का भी वर्णन उपस्थित किया गया है जो मैथुन का पुजारी बन कर तथा एक स्त्री पर आसक्त होकर 499 स्त्रियों को आग में जला देता है, उस नवम् अध्ययन का आदिम सूत्र निनोक्त है मूल-उक्खेवो णवमस्स। एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेण समएणं रोहीडए नाम णगरे होत्था, रिद्ध। पुढवीवडंसए उजाणे। धरणे जक्खे। वेसमणदत्ते राया।सिरीदेवी।पूसणंदी कुमारे जुवराया।तत्थ णं रोहीडए णगरे दत्ते णामं गाहावती परिवसति, अड्ढे / कण्हसिरी भारिया। तस्स णं दत्तस्स धूया कण्हसिरीए अत्तया देवदत्ता नामं दारिया होत्था, अहीण जाव उक्किदुसरीरा। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव गओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं जेटे अंतेवासी छट्ठक्खमणपारणगंसि तहेव जाव रायमग्गं ओगाढे हत्थी, आसे, पुरिसे पासति।तेसिं पुरिसाणं मझगयं पासति एगंइत्थियं अवओडगबंधणं उक्खित्तकण्णनासं जाव सूले भिजमाणं पासति पासित्ता इमे अज्झथिए 5 समुप्पन्ने तहेव णिग्गते जाव एवं वयासी-एसा णं भंते ! इत्थिया पुव्वभवे का आसि ? . छाया-उत्क्षेपो नवमस्य। एवं खलु जम्बूः ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये रोहीतकं नाम नगरमभूद् ऋद्ध॰, पृथिव्यवतंसकमुद्यानम्। धरणो यक्षः। वैश्रमणदत्तो - 1. समुद्रतरणे यद्वदुपायो नौः प्रकीर्तिता। संसारतरणे तद्वद् , ब्रह्मचर्यं प्रकीर्तितम्॥ 'प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [671
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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