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________________ उलटी लाने वाले द्रव्यों का ग्रहण है) से कराई जाती है।३-"उवीलणेहि यत्ति-अवपीडनंनिष्पीडनम्-" अर्थात् प्रस्तुत में गले को दबाने का नाम अवपीडन है। ४-"कवलग्गाहेहि यत्ति-कवलग्राहः-कण्टकापनोदाय स्थूलकवलग्रहणम्, मुखविमर्दनार्थं वा दंष्ट्राधः काष्ठखण्डदानम्-" अर्थात् कांटे को निकालने के लिए बड़े ग्रास का ग्रहण कराना, ताकि उसके संघर्ष से गले में अटका हुआ कांटा निकल जाए, अथवा-मुख की मालिश करने के लिए दाढ़ों के नीचे लकड़ी का टुकड़ा रखना-कवलग्राह-कहलाता है। ५-सल्लुद्धरणेहि य त्ति-शल्योद्धरणम्-यंत्रप्रयोगात् कंटकोद्धारः, तै:-" अर्थात् यन्त्र के प्रयोग से कांटे को निकालना शल्योद्धार कहलाता है। ६-विसल्लकरणेहि य त्ति-विशल्यकरणम्औषधसामर्थ्यात्-"अर्थात् औषध के बल से कांटा निकालना विशल्यकरण कहलाता है। -संता ३-यहां दिए गए 3 के अंक से अवशिष्ट, १-तंता, २-परितन्ता-इन दो पदों का ग्रहण करना चाहिए। श्रान्त आदि पदों की व्याख्या प्रथम अध्याय में की जा चुकी -वेजपडियारणिव्विण्णे-वैद्यप्रतिकारनिर्विण्णः-(अर्थात् वैद्यों के प्रतिकारइलाज से निराश), यह पद शौरिकदत्त के हतभाग्य होने का सूचक है। भाग्यहीन पुरुष के लिए किया गया लाभ का काम भी लाभप्रद नहीं रहता। शल्यचिकित्सा तथा औषधिचिकित्सा आदि में प्रवीण वैद्यों का निष्फल रहना, शौरिक की मन्दभाग्यता को ही आभारी है। वस्तुत: पापिष्टों की यही दशा होती है। उन के लाभ के लिए किया गया काम भी दुःखान्त परिणाम वाला होता -सुक्खे जाव विहरति-यहां के जाव-यावत् पद से ."-भुक्खे णिम्मसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए-" इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। शुष्क आदि पदों का अर्थ इसी अष्टम अध्ययन में किया जा चुका है। -पुराणाणं जाव विहरति-यहां पठित-जाव-यावत्-पद से अभिमत पदों का विवरण प्रथम अध्ययन में किया जा चुका है। पाठक वहां पर देख सकते हैं। अब सूत्रकार शौरिकदत्त के आगामी भवों का वर्णन करते हुए कहते हैं- . मूल-सोरिए णं भंते ! मच्छबंधे इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववजिहिति ? गोतमा ! सत्तरि वासाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए० संसारो तहेव जाव पढवीए / ततो हत्थिणाउरे मच्छत्ताए उववजिहिति।सेणं ततो मच्छिएहिं जीवियाओ ववरोविते 664 ] श्री विपाक सूत्रम् / अष्टम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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