________________ चतुष्क, चत्वर, महापथ और पथ इन रास्तों में बड़े ऊंचे शब्द से उद्घोषणा करते हैं कि हे भद्रपुरुषो ! शौरिकदत्त के गले में मत्स्यकंटक-मच्छी का कांटा लग गया है, जो वैद्य तथा वैद्यपुत्र आदि उस को निकाल देगा तो शौरिकदत्त उस को बहुत सा द्रव्य देगा। * "बहूहिं उप्पत्तियाहि य 4 बुद्धिहिं"-यहां दिया गया चार का अंक वैनयिकी, कर्मजा और पारिणामिकी-इन तीनों अवशिष्ट बुद्धियों का परिचायक है। औत्पातिकी आदि पदों का भावार्थ निनोक्त है १-जो बुद्धि प्रथम बिना देखे, बिना सुने और बिना जाने विषयों को उसी क्षण में विशुद्ध यथावस्थितरूप में ग्रहण करती है, अर्थात् शास्त्राभ्यास और अनुभव आदि के बिना केवल उत्पात-जन्म से ही जो उत्पन्न होती है, उसे औत्पातिकी बुद्धि कहते हैं / नटपुत्र रोहा, मगधनरेश महाराज श्रेणिक के मन्त्री श्री अभयकुमार, मुगलबादशाह अकबर के दीवान बीरबल, महाकवि कालीदास आदि पूर्वपुरुष औत्पातिकी बुद्धि के ही धनी थे। २-कठिन से कठिन समस्या को सुलझाने वाली, नीतिधर्म और अर्थशास्त्र के रहस्य को ग्रहण करने वाली, तथा लोकद्वय-इस लोक और परलोक में सुख का सम्पादन करने वाली बुद्धि का नाम वैनयिकी बुद्धि है। . ३-उपयोग से-एकाग्र मन से कार्यों के परिणाम (फल) को देखने वाली, तथा अनेकविध कार्यों के अभ्यास और चिन्तन से विशाल फल देने वाली बुद्धि कर्मजा बुद्धि कहलाती है। - ४-अनुमान, हेतु और दृष्टान्त से विषय को सिद्ध करने वाली तथा अवस्था के परिपाक से पुष्ट एवं आध्यात्मिक उन्नति और मोक्षरूप फल को देने वाली बुद्धि पारिणामिकी कही जाती है। __तथा-वमणेहि-इत्यादि पदों की व्याख्या वृत्तिकार के शब्दों में निम्नोक्त है -"वमणेहि यत्ति-वमनं स्वतः सम्भूतम्-" अर्थात् वमन शब्द से उस वमन का ग्रहण जानना चाहिए जो किसी उपचार से नहीं किन्तु स्वाभाविक आई है। वमन शब्द का अधिक अर्थ-सम्बन्धी ऊहापोह प्रथम अध्याय में किया जा चुका है। २-"छड्डणेहि यत्तिछर्दनं-वचादिद्रव्य-प्रयोगकृतम्-" अर्थात् छर्दन भी वमन का ही नाम है, किन्तु यह बच (एक पौधा, जिस की जड़ दवा के काम आती है) आदि (आदि शब्द से मदनफल प्रभृति 1. उप्पत्तिया 1 वेणइया 2 कम्मया 3 परिणामिया ४।बुद्धी चउव्विहा वुत्ता पंचमा नोवलब्भई(नन्दीसूत्र 26) / इन चारों बुद्धियों के विस्तृत स्वरूप को जानने की अभिलाषा रखने वाले पाठक श्री नन्दीसूत्र की टीका देख सकते हैं। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / अष्टम अध्याय [663