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________________ हुआ है। किडिकिडियाभूयं-जो किटिकिटिका शब्द कर रहा है। णीलसाडगनियत्थं-नीलशाटकनिवसित नील शाटक-धोती धारण किए हुए। मच्छकंटएणं-मत्स्यकंटक के।गलए-गले में-कण्ठ में। अणुलग्गेणंलगे होने के कारण। कट्ठाइं-कष्टात्मक। कलुणाई-करुणाजनक। वीसराइं-विस्वर दीनतापूर्ण वचन / उक्कूवमाणं-बोलते हुए को, तथा। अभिक्खणं २-बार-बार। पूयकवले य-पीव के कवलों कुल्लों का।रुहिरकवले य-रुधिरकवलों- खून के कुल्लों का। किमिकवले य-कृमिकवलों-कीड़ों के कुल्लों का।वममाणं-वमन करते हुए को।पासति २-देखते हैं, देख कर।इमे-यह। अज्झथिए ५-आध्यात्मिक संकल्प 5 / समुप्पन्ने-उत्पन्न हुआ। अहो-खेद है, कि। अयं-यह। पुरिसे-पुरुष। पुरा-पुरातन। जावयावत्। विहरति-विहरण कर रहा है। एवं-इस प्रकार / संपेहेति २-विचार करते हैं, विचार कर / जेणेवजहां। समणे-श्रमण। भगवं-भगवान् महावीर स्वामी थे। जाव-यावत्। पुव्वभवपुच्छा-पूर्वभव की पृच्छा की। वागरणं-भगवान् का प्रतिपादन। मूलार्थ-उस काल और उस समय शौरिकावतंसक नामक उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे। यावत् परिषद् और राजा वापिस चले गए। उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ-प्रधान शिष्य गौतम स्वामी यावत् शौरिकपुरनगर में उच्च-धनी, नीच-निर्धन तथा मध्य-सामान्य घरों में भ्रमण करते हुए यथेष्ट आहार लेकर नगर से बाहर निकलते हैं, तथा मत्स्यबंध पाटक के पास से निकलते हुए उन्होंने अत्यधिक विशाल मनुष्यसमुदाय के मध्य में एक सूखे. हुए, बुभुक्षित, निर्मांस और अस्थिचर्मावनद्ध-जिस का चर्म शरीर की हड्डियों से चिपटा हुआ, उठते बैठते समय जिस की अस्थियां किटिकिटिका शब्द कर रही हैं, नीली शाटक वाले एवं गले में मत्स्यकंटक लग जाने के कारण कष्टात्मक, करुणाजनक और दीनतापूर्ण वचन बोलते हुए पुरुष को देखा, जो कि पूयकवलों, रुधिरकवलों और कृमिकवलों का वमन कर रहा था। उस को देख कर उन के मन में निम्नोक्त संकल्प उत्पन्न हुआ अहो ! यह पुरुष पूर्वकृत यावत् कर्मों से नरकतुल्य वेदना का उपभोग करता हुआ समय बिता रहा है-इत्यादि विचार कर अनगार गौतम श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास यावत् उसके पूर्वभव की पृच्छा करते हैं। भगवान् प्रतिपादन करने लगे। टीका-एक बार शौरिकपुर नगर में चरम तीर्थंकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे, वे शौरिकावतंसक उद्यान में विराजमान हुए। शौरिकपुर निवासियों ने उन के पुनीत दर्शन और परमपावनी धर्मदेशना से भूरि-भूरि लाभ उठाया। प्रतिदिन भगवान् की धर्मदेशना सुनते और उसका मनन करते हुए अपने आत्मा के कल्मष-पाप को धोने का पुण्य प्रयत्न करते / एक दिन भगवान् की धर्मदेशना को सुन कर नगर की जनता जब वापिस चली गई तो भगवान् के ज्येष्ठ शिष्य श्री गौतम स्वामी जो कि भगवान् के चरणों में विराजमान थे-बेले के 624 ] श्री विपाक सूत्रम् / अष्टम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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