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________________ का नाश करने के अतिरिक्त मांसाहार एवं मदिरापान जैसी दुर्गतिप्रद जघन्य प्रवृत्तियों में अधिकाधिक पापपुंज एकत्रित करता है, और फलस्वरूप तीव्रतर अशुभकर्मों का बन्ध कर लेता है और उन का फल भोगते समय अत्यधिक दुःखी होता है। सूत्रकार उसका आरम्भ इस प्रकार करते हैं मूल-अट्ठमस्स उक्वो / एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं 2 सोरियपुरं णगरं होत्था।सोरियवडिंसगं उजाणं। सोरियो जक्खो।सोरियदत्ते राया। तस्स णं सोरियपुरस्स णगरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए एगे मच्छबन्धपाडए होत्था। तत्थ णं समुद्ददत्ते नामं मच्छंधे परिवसति, अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे। तस्स णं समुद्ददत्तस्स समुद्ददत्ता भारिया होत्था, अहीण / तस्स णं समुद्ददत्तस्स मच्छंधस्स पुत्ते समुद्ददत्ताए भारियाए अत्तए सोरियदत्ते नामं दारए होत्था, . अहीण। छाया-अष्टमस्योत्क्षेपः। एवं खलु जम्बूः ! तस्मिन् काले 2 शौरिकपुरं नगरमभवत्। शौरिकावतंसकमुद्यानम्। शौरिको यक्षः। शौरिकदत्तो राजा। तस्मात् शौरिकपुराद् नगराद् बहिः उत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे एको मत्स्यबन्धपाटकोऽभूत्। तत्र समुद्रदत्तो नाम मत्स्यबन्धः परिवसति, अधार्मिको यावद् दुष्यप्रत्यानन्दः। तस्स समुद्रदत्तस्य समुद्रदत्ता भार्याऽभूदहीन / तस्य समुद्रदत्तस्य मत्स्यबन्धस्य पुत्रः समुद्रदत्ताया भार्याया आत्मजः शौरिकदत्तो नाम दारकोऽभवदहीन। पदार्थ-अट्ठमस्स-अष्टम अध्ययन का। उक्खेवो-उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्ववत् समझ लेना चाहिए। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। जंबू !-हे जम्बू ! तेणं कालेणं २-उस काल और उस समय में। सोरियपुरं-शौरिकपुर नाम का। णगरं होत्था-नगर था, वहां। सोरियवडिंसगं-शौरिकावतंसक नामक। उज्जाणं-उद्यान था, उस में। सोरियो जक्खो-शौरिक नामक यक्ष. था अर्थात् शौरिक यक्ष का वहां पर स्थान था। सोरियदत्ते राया-शौरिक दत्त नामक राजा था। तस्स णं-उस। सोरियपुरस्स-शौरिकपुर / णगरस्स-नगर के। बहिया-बाहर। उत्तरपुरस्थिमे-उत्तर पूर्व। दिसीभाए-दिग्विभाग में अर्थात् ईशान कोण में। एगे-एक। मच्छंधपाडए-मत्स्यबन्धपाटक-मच्छीमारों का मुहल्ला। होत्था-था। तत्थ णं-वहां पर। समुद्ददत्ते-समुद्रदत्त / नाम-नाम का। मच्छंधे-मत्स्यबन्ध-मच्छीमार। परिवसति-रहता था, जो कि। अहम्मिए-अधार्मिक। जाव-यावत्। दुप्पडियाणंदे-दुष्प्रत्यानन्द-बड़ी कठिनाई से प्रसन्न होने वाला था। तस्स णं-उस। समुद्ददत्तस्स-समुद्रदत्त की। समुद्ददत्ता-समुद्रदता नाम की। भारिया-भार्या / होत्थाथी, जोकि / अहीण-अन्यून एवं निर्दोष पांच इन्द्रियों से युक्त शरीर वाली थी। तस्स णं-उस।समुद्ददत्तस्ससमुद्रदत्त / मच्छंधस्स-मत्स्यबन्ध का। पुत्ते-पुत्र / समुद्ददत्ताए-समुद्रदत्ता। भारियाए-भार्या का। अत्तए६२० ] श्री विपाक सूत्रम् / अष्टम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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