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________________ तब सेठ सुदर्शन मन ही मन बड़ी गम्भीरता से सोचने लगे सुदर्शन ! कामवासना मनुष्य का सबसे बड़ा शत्र है, जो सर्वतोभावी पतन करने के साथ-साथ उस का सर्वस्व भी छीन लेता है। इतिहास इसका पूरा समर्थक है। रावण त्रिखण्डाधिपति था, कथाकार इक लक्ख पूत सवा लक्ख नाती, रावण के घर दीया न बाती। - यह कह कर उसके परिवार की कितनी महानता अभिव्यक्त करते हैं, इसके अतिरिक्त रावण अपने युग का महान विजेता और प्रतापी राजा समझा जाता था। लक्ष्मीदेवी की उस पर पूर्ण कृपा थी, उस की लंका भी सोने से बनी हुई थी। परन्तु हुआ क्या ? एक वासना ने उस का सर्वनाश कर डाला, प्रतिवर्ष उसके कुकृत्यों को दोहराया जाता है, उसे विडम्बित किया जाता है, तथा उसे जलाया जाता है। कहां त्रिखण्डाधिपति रावण और कहां मैं ? जब वासना ने उस का भी सर्वतोमुखी विनाश कर डाला, तो फिर भला मैं किस गणना में हूँ ? अस्तु, महाराणी अभया कितना भी कुछ कहे, मुझे भूल कर कभी भी वासना के पथ का पथिक नहीं / बनना चाहिए। दूसरी बात यह है कि अभया राजपत्नी होने से मेरी माता के तुल्य है। माता के सम्मान को सुरक्षित रखना एक विनीत पुत्र का सर्वप्रथम कर्त्तव्य बन जाता है। . आज तो भला मेरा पौषध ही है, परन्तु मैं तो विवाह के समय-अपनी विवाहिता स्त्री के अतिरिक्त संसार की सब स्त्रियों को माता और बहिन के तुल्य समझंगा-इस प्रतिज्ञा को धारण कर चुका हूँ। तथा शास्त्रों में परनारी को पैनी छुरी कहा है, उस का संसर्ग तो स्वप्न में भी नहीं करना चाहिए, तब महाराणी अभया के इस दुर्गतिमूलक जघन्य प्रस्ताव पर कुछ विचार करूं! यह प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता, इत्यादि विचारों में निमग्न धर्मवीर सुदर्शन ने रानी को सदाचार के सत्पथ पर लाने का प्रयास करने के साथ-साथ उसे स्पष्ट शब्दों में कह दिया बन्दे ने तो जब से जग में कुछ-कुछ होश संभाला है, ___ माता और बहिन सम परनारी को देखा भाला है। मुझ से तो यह स्वप्नतलक में भी आशा मत रखिएगा, तैल नहीं है इस तिलतुष में चाहे कुछ भी करिएगा। स्वतः स्वर्ग से इन्द्राणी भी पतित बनाने आ जाए, तो भी वज्र मूर्ति सा मेरा मनमेरु न डिगा पाए। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [617
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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